ीर योद्धा महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह
अकबर के बीच हल्दीघाटी में
हुए युद्ध के बाद अकबर मानसिक से रूप से बहुत विचलित हो
गया था। अपने हरम में जब वह सोता था तब रात में
नींद में कांपने लगता था। अकबर की हालात
देख उसकी पत्नियां भी घबरा
जाती, इस दौरान वह जोरशोर से महाराणा प्रताप का नाम
लेता था। 1576 में हुए
हल्दीघाटी युद्ध की
पूरी कहानी।
कहते हैं हल्दीघाटी के युद्ध में
शहीद हुए सैनिकों के खून से तिलक होने के बाद
हल्दीघाटी की
मिट्टी चंदन बन गई। आज भी यहां आने
वाले लोग हल्दीघाटी की इस
भूमि पर आकर अपने मस्तक पर इस मिट्टी से तिलक
करते हैं। हल्दीघाटी की
मिट्टी का रंग हल्दी की
तरह पीला है। यहीं पर महाराणा प्रताप
की सेना ने अकबर की फैज को नाको चने
चबाने मजबूर कर दिया था। हल्दीघाटी जहां
की पथरीली भूमि पर चेतक ने
अपनी स्वामिभक्ति की मिसाल कायम
की थी। 18 जून सन् 1576 में मेवाड़ के
तत्कालीन राजा महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट
अकबर के बीच जबरदस्त युद्ध हुआ था। इस लड़ाई
में ना अकबर जीता और ना महाराणा प्रताप हारे। हजारों
वीरों के खून में नहाकर यहां की
मिट्टी पावन हो गई और
हल्दीघाटी का नाम इतिहास में अमर हो
गया। कई दौर में हुए इस युद्ध के बारे में कहा जाता है कि अकबर
महाराणा प्रताप के युद्ध कौशल से इतना घबरा गया था कि उसे सपने
में महाराणा प्रताप दिखते थे। अकबर सोते समय कांपने के साथ
महाराणा प्रताप का नाम लेकर कांपने लगता था।
हल्दीघाटी का कण-कण कहता है
बलिदान की कहानी
हल्दीघाटी का कण-कण प्रताप
की सेना के शौर्य, पराक्रम और बलिदानों की
कहानी कहता है। रणभूमि की
कसौटी पर राजपूतों के कर्तव्य और वीरता
के जज्बे की परख हुई थी और जिसमें
कुंदन की भांति तप कर निकला राजपूतों और
भीलों का देश प्रेम। अमर सिंह का भातृ प्रेम। झाला मान
का बलिदान। चेतक की स्वामीभक्ति।
महाराणा प्रताप का कभी ना मरने वाला स्वराज पाने का
सपना और हजारों राजपूत वीरों का पराक्रम।🔫
अकबर को नहीं रहने दिया चैन से
मेवाड़ के राजा राणा उदय सिंह और महारानी जयवंता बाई
के पुत्र महाराणा प्रताप सिसोदिया वंश के अकेले ऐसे राजपूत राजा थे
जिन्होंने मुगल सम्राट अकबर की
आधीनता अस्वीकार करने का साहस दिखाया
था और जो जब तक जीवित रहे अकबर को चैन से
नहीं रहने दिया। महाराणा प्रताप का जन्म तो
कुम्भलगढ़ के किले में हुआ था। उनका बचपन चित्तौड़ में
बीता। बचपन से निडर, साहसी और भाला
चलाने में निपुण महाराणा प्रताप ने एक बार तो जंगल में शेर से
ही भिड़ गए थे और उसे मार गिराया था।
अपनी मातृभूमि मेवाड़ को अकबर के हाथों जाने से बचाने
के लिए महाराणा प्रताप ने एक बड़ी
शक्तिशाली सेना तैयार की थी
जिसमें अधिकतर भील लड़ाके थे। यह गुरिल्ला युद्ध में
महारत रखते थे।🔫 बहुत बड़ी थी अकबर की
फौज
अकबर की फौज बड़ी और सशक्त होने
के साथ उसके पास उस दौर के हर आधुनिक हथियार था। सेना में
लड़ाके ज्यादा थे, तोपें थी और हाथी
भी बड़ी संख्या में थे। इधर, महाराणा
प्रताप की सेना संख्या में कम थी और
उनके पास घोड़ों की संख्या ज्यादा थी।
अकबर की सेना गोकुंडा तक पहुंचने की
तैयारी में थी।
हल्दीघाटी के पास ही खुले
में उसने अपने खेमे लगाए थे। महाराणा प्रताप की सेना
ने गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करके अकबर की सेना में
भगदड़ मचा दी। अकबर की विशाल सेना
बौखलाकर लगभग पांच किलोमीटर पीछे हट
गई। जहां खुले मैदान में महाराणा प्रताप और अकबर
की सेना के बीच पांच घंटे तक भयंकर युद्ध
हुआ।🔫 पांच घंटे में मारे गए 18 हजार सैनिक
इस युद्ध में लगभग 18 हजार सैनिक मारे गए। इतना रक्त
बहा कि इस जगह का नाम ही रक्त तलाई
पड़ गया। महाराणा प्रताप के खिलाफ इस युद्ध में अकबर
की सेना का नेतृत्व सेनापति मानसिंह कर रहे
थे। जो हाथी पर सवार थे। महाराणा अपने
वीर घोड़े चेतक पर सवार होकर रणभूमि में आए
थे जो बिजली की तरह दौड़ता था
और पल भर में एक जगह से दूसरी जगह
पहुंच जाता था। यूं चेतक ने मानसिंह के हाथी
के मस्तक पर चढ़ाई कर दी थी।🔫 घोड़े सिर पर बांधा गया था हाथी की
मुखौटा
मुगल सेना में हाथियों की संख्या ज़्यादा होने के
कारण चेतक (घोड़े) के सिर पर हाथी का मुखौटा
बांधा गया था ताकि हाथियों को भरमाया जा सके। कहा जाता है
कि चेतक पर सवार महाराणा प्रताप एक के बाद एक दुश्मनों
का सफाया करते हुए सेनापति मानसिंह के हाथी
के सामने पहुंच गए थे। उस हाथी
की सूंड़ में तलवार बंधी
थी। महाराणा ने चेतक को एड़ लगाई और वो
सीधा मानसिंह के हाथी के मस्तक
पर चढ़ गया। मानसिंह हौदे में छिप गया और राणा के वार से
महावत मारा गया। हाथी से उतरते समय चेतक
का एक पैर हाथी की सूंड़ में
बंधी तलवार से कट गया।🔫
जब दुश्मन से घिर गए थे महाराणा प्रताप
चेतक का पांव कटने के बाद महाराणा प्रताप दुश्मन की
सेना से घिर गए थे। महाराणा को दुश्मनों से घिरता देख
सादड़ी सरदार झाला माना सिंह उन तक पहुंच गए और
उन्होंने राणा की पगड़ी और छत्र जबरन
पहन लिए। उन्होंने महाराणा से कहा कि एक झाला के मरने से
कुछ नहीं होगा। अगर आप बच गए तो कई और झाला
तैयार हो जाएंगे। राणा का छत्र और पगड़ी पहने झाला
को ही राणा समझकर मुगल सेना उनसे भिड़ गई और
महाराणा प्रताप बच कर निकल गए। झाला मान वीरगति
को प्राप्त हुए। उनकी वजह से महाराणा ज़िदा रहे।🔫
कटे पैर से महाराणा को सुरक्षित ले गया चेतक
महाराणा प्रताप का घौड़ा चेतक अपना एक पैर कटा होने के बावजूद
महाराणा को सुरक्षित स्थान पर लाने के लिए बिना रुके पांच
किलोमीटर तक दौड़ा। यहां तक कि उसने रास्ते में पड़ने
वाले 100 मीटर के बरसाती नाले को
भी एक छलांग में पार कर लिया। राणा को सुरक्षित स्थान
पर पहुंचाने के बाद ही चेतक ने अपने प्राण छोड़े।
इतिहास में चेतक जैसी स्वामीभक्ति
की मिसाल और कहीं देखने को
नहीं मिलती। जहां चेतक ने प्राण छोड़े
वहां राणा की बनवाई चेतक समाधि मौजूद है। युद्ध में
विजय भले ही अकबर को मिली लेकिन
इतिहास में नाम अमर हुआ महाराणा प्रताप की
वीरता, चेतक की स्वामीभक्ति
और झालामान के बलिदान का।🔫
महाराणा प्रताप ने लिया घांस की रोटी खाने का
प्रण
इस युद्ध में अपने प्रियजनों, मित्रो, सैनिको और घोड़े चेतक को खोने
के बाद महाराणा प्रताप ने प्रण किया था कि वो जब तक मेवाड़ वापस
प्राप्त नहीं कर लेते घास की
रोटी खाएंगे और जमीन पर सोएंगे।
जीवन पर्यन्त उन्होंने अपना यह प्रण निभाया और
अकबर की सेना से युद्ध करते रहे। उनके
जीते जी अकबर कभी चैन से
नहीं रह पाया और मेवाड़ को अपने
आधीन नहीं कर सका। 59 वर्ष
की उम्र में महाराणा ने चावंड में अपनी
अंतिम सांस ली और तब जाकर अकबर की
सांस में सांस आईं। मेवाड़ में आज भी कहा जाता है कि
पुत्र हो तो महाराणा प्रताप जैसा।
हल्टीघाटी की पावन भूमि उस
जंगली बूटी की तरह है जो
रग-रग में वीरता और गौरव का अहसास भर
देती है। इस देशभक्त वीर ने मेवाड भूमि
की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।
🔫 वर्तमान में चित्तौड़ की हल्दी
घाटी में चेतक की समाधि बनी
हुई है, जहां स्वयं प्रताप और उनके भाई शक्तिसिंह ने अपने
हाथों से इस अश्व का दाह-संस्कार किया था। महाराणा प्रताप के
भाले का वजन 80 किलो और कवच का वजन भी 80
किलो था। महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान
उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं। महाराणा प्रताप
के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना जो आज
हल्दी घटी में सुरक्षित है। महाराणा
प्रताप का घोडा चेतक महाराणा को 26 फीट का खाई पार
करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ।
उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वो खाई पार
कर गया। मेवाड़ राजघराने के वारिस को एकलिंग जी
भगवन का दीवान माना जाता है। छत्रपति
शिवाजी भी मूल रूप से मेवाड़ से थे
वीर शिवाजी के पर दादा उदैपुर महाराणा के
छोटे भाई थे।🔫 शासनकाल : 1568-1597
जन्म : 9 मई, 1540
जन्मस्थान : कुम्भलगढ़, जूनी कचेरी,
पाली
मृत्यु : 19 जनवरी, 1597 (उम्र 57)
पूर्ववर्ती महाराणा : महाराणा उदय सिंह
द्वितीय
वंश : 3 बेटे और 2 बेटियां
राज घराना : सूर्यवंशी राजपूत
पिता : महाराणा उदय सिंह द्वितीय
माता : महारानी जवंता बाई
अकबर के बीच हल्दीघाटी में
हुए युद्ध के बाद अकबर मानसिक से रूप से बहुत विचलित हो
गया था। अपने हरम में जब वह सोता था तब रात में
नींद में कांपने लगता था। अकबर की हालात
देख उसकी पत्नियां भी घबरा
जाती, इस दौरान वह जोरशोर से महाराणा प्रताप का नाम
लेता था। 1576 में हुए
हल्दीघाटी युद्ध की
पूरी कहानी।
कहते हैं हल्दीघाटी के युद्ध में
शहीद हुए सैनिकों के खून से तिलक होने के बाद
हल्दीघाटी की
मिट्टी चंदन बन गई। आज भी यहां आने
वाले लोग हल्दीघाटी की इस
भूमि पर आकर अपने मस्तक पर इस मिट्टी से तिलक
करते हैं। हल्दीघाटी की
मिट्टी का रंग हल्दी की
तरह पीला है। यहीं पर महाराणा प्रताप
की सेना ने अकबर की फैज को नाको चने
चबाने मजबूर कर दिया था। हल्दीघाटी जहां
की पथरीली भूमि पर चेतक ने
अपनी स्वामिभक्ति की मिसाल कायम
की थी। 18 जून सन् 1576 में मेवाड़ के
तत्कालीन राजा महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट
अकबर के बीच जबरदस्त युद्ध हुआ था। इस लड़ाई
में ना अकबर जीता और ना महाराणा प्रताप हारे। हजारों
वीरों के खून में नहाकर यहां की
मिट्टी पावन हो गई और
हल्दीघाटी का नाम इतिहास में अमर हो
गया। कई दौर में हुए इस युद्ध के बारे में कहा जाता है कि अकबर
महाराणा प्रताप के युद्ध कौशल से इतना घबरा गया था कि उसे सपने
में महाराणा प्रताप दिखते थे। अकबर सोते समय कांपने के साथ
महाराणा प्रताप का नाम लेकर कांपने लगता था।
हल्दीघाटी का कण-कण कहता है
बलिदान की कहानी
हल्दीघाटी का कण-कण प्रताप
की सेना के शौर्य, पराक्रम और बलिदानों की
कहानी कहता है। रणभूमि की
कसौटी पर राजपूतों के कर्तव्य और वीरता
के जज्बे की परख हुई थी और जिसमें
कुंदन की भांति तप कर निकला राजपूतों और
भीलों का देश प्रेम। अमर सिंह का भातृ प्रेम। झाला मान
का बलिदान। चेतक की स्वामीभक्ति।
महाराणा प्रताप का कभी ना मरने वाला स्वराज पाने का
सपना और हजारों राजपूत वीरों का पराक्रम।🔫
अकबर को नहीं रहने दिया चैन से
मेवाड़ के राजा राणा उदय सिंह और महारानी जयवंता बाई
के पुत्र महाराणा प्रताप सिसोदिया वंश के अकेले ऐसे राजपूत राजा थे
जिन्होंने मुगल सम्राट अकबर की
आधीनता अस्वीकार करने का साहस दिखाया
था और जो जब तक जीवित रहे अकबर को चैन से
नहीं रहने दिया। महाराणा प्रताप का जन्म तो
कुम्भलगढ़ के किले में हुआ था। उनका बचपन चित्तौड़ में
बीता। बचपन से निडर, साहसी और भाला
चलाने में निपुण महाराणा प्रताप ने एक बार तो जंगल में शेर से
ही भिड़ गए थे और उसे मार गिराया था।
अपनी मातृभूमि मेवाड़ को अकबर के हाथों जाने से बचाने
के लिए महाराणा प्रताप ने एक बड़ी
शक्तिशाली सेना तैयार की थी
जिसमें अधिकतर भील लड़ाके थे। यह गुरिल्ला युद्ध में
महारत रखते थे।🔫 बहुत बड़ी थी अकबर की
फौज
अकबर की फौज बड़ी और सशक्त होने
के साथ उसके पास उस दौर के हर आधुनिक हथियार था। सेना में
लड़ाके ज्यादा थे, तोपें थी और हाथी
भी बड़ी संख्या में थे। इधर, महाराणा
प्रताप की सेना संख्या में कम थी और
उनके पास घोड़ों की संख्या ज्यादा थी।
अकबर की सेना गोकुंडा तक पहुंचने की
तैयारी में थी।
हल्दीघाटी के पास ही खुले
में उसने अपने खेमे लगाए थे। महाराणा प्रताप की सेना
ने गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करके अकबर की सेना में
भगदड़ मचा दी। अकबर की विशाल सेना
बौखलाकर लगभग पांच किलोमीटर पीछे हट
गई। जहां खुले मैदान में महाराणा प्रताप और अकबर
की सेना के बीच पांच घंटे तक भयंकर युद्ध
हुआ।🔫 पांच घंटे में मारे गए 18 हजार सैनिक
इस युद्ध में लगभग 18 हजार सैनिक मारे गए। इतना रक्त
बहा कि इस जगह का नाम ही रक्त तलाई
पड़ गया। महाराणा प्रताप के खिलाफ इस युद्ध में अकबर
की सेना का नेतृत्व सेनापति मानसिंह कर रहे
थे। जो हाथी पर सवार थे। महाराणा अपने
वीर घोड़े चेतक पर सवार होकर रणभूमि में आए
थे जो बिजली की तरह दौड़ता था
और पल भर में एक जगह से दूसरी जगह
पहुंच जाता था। यूं चेतक ने मानसिंह के हाथी
के मस्तक पर चढ़ाई कर दी थी।🔫 घोड़े सिर पर बांधा गया था हाथी की
मुखौटा
मुगल सेना में हाथियों की संख्या ज़्यादा होने के
कारण चेतक (घोड़े) के सिर पर हाथी का मुखौटा
बांधा गया था ताकि हाथियों को भरमाया जा सके। कहा जाता है
कि चेतक पर सवार महाराणा प्रताप एक के बाद एक दुश्मनों
का सफाया करते हुए सेनापति मानसिंह के हाथी
के सामने पहुंच गए थे। उस हाथी
की सूंड़ में तलवार बंधी
थी। महाराणा ने चेतक को एड़ लगाई और वो
सीधा मानसिंह के हाथी के मस्तक
पर चढ़ गया। मानसिंह हौदे में छिप गया और राणा के वार से
महावत मारा गया। हाथी से उतरते समय चेतक
का एक पैर हाथी की सूंड़ में
बंधी तलवार से कट गया।🔫
जब दुश्मन से घिर गए थे महाराणा प्रताप
चेतक का पांव कटने के बाद महाराणा प्रताप दुश्मन की
सेना से घिर गए थे। महाराणा को दुश्मनों से घिरता देख
सादड़ी सरदार झाला माना सिंह उन तक पहुंच गए और
उन्होंने राणा की पगड़ी और छत्र जबरन
पहन लिए। उन्होंने महाराणा से कहा कि एक झाला के मरने से
कुछ नहीं होगा। अगर आप बच गए तो कई और झाला
तैयार हो जाएंगे। राणा का छत्र और पगड़ी पहने झाला
को ही राणा समझकर मुगल सेना उनसे भिड़ गई और
महाराणा प्रताप बच कर निकल गए। झाला मान वीरगति
को प्राप्त हुए। उनकी वजह से महाराणा ज़िदा रहे।🔫
कटे पैर से महाराणा को सुरक्षित ले गया चेतक
महाराणा प्रताप का घौड़ा चेतक अपना एक पैर कटा होने के बावजूद
महाराणा को सुरक्षित स्थान पर लाने के लिए बिना रुके पांच
किलोमीटर तक दौड़ा। यहां तक कि उसने रास्ते में पड़ने
वाले 100 मीटर के बरसाती नाले को
भी एक छलांग में पार कर लिया। राणा को सुरक्षित स्थान
पर पहुंचाने के बाद ही चेतक ने अपने प्राण छोड़े।
इतिहास में चेतक जैसी स्वामीभक्ति
की मिसाल और कहीं देखने को
नहीं मिलती। जहां चेतक ने प्राण छोड़े
वहां राणा की बनवाई चेतक समाधि मौजूद है। युद्ध में
विजय भले ही अकबर को मिली लेकिन
इतिहास में नाम अमर हुआ महाराणा प्रताप की
वीरता, चेतक की स्वामीभक्ति
और झालामान के बलिदान का।🔫
महाराणा प्रताप ने लिया घांस की रोटी खाने का
प्रण
इस युद्ध में अपने प्रियजनों, मित्रो, सैनिको और घोड़े चेतक को खोने
के बाद महाराणा प्रताप ने प्रण किया था कि वो जब तक मेवाड़ वापस
प्राप्त नहीं कर लेते घास की
रोटी खाएंगे और जमीन पर सोएंगे।
जीवन पर्यन्त उन्होंने अपना यह प्रण निभाया और
अकबर की सेना से युद्ध करते रहे। उनके
जीते जी अकबर कभी चैन से
नहीं रह पाया और मेवाड़ को अपने
आधीन नहीं कर सका। 59 वर्ष
की उम्र में महाराणा ने चावंड में अपनी
अंतिम सांस ली और तब जाकर अकबर की
सांस में सांस आईं। मेवाड़ में आज भी कहा जाता है कि
पुत्र हो तो महाराणा प्रताप जैसा।
हल्टीघाटी की पावन भूमि उस
जंगली बूटी की तरह है जो
रग-रग में वीरता और गौरव का अहसास भर
देती है। इस देशभक्त वीर ने मेवाड भूमि
की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।
🔫 वर्तमान में चित्तौड़ की हल्दी
घाटी में चेतक की समाधि बनी
हुई है, जहां स्वयं प्रताप और उनके भाई शक्तिसिंह ने अपने
हाथों से इस अश्व का दाह-संस्कार किया था। महाराणा प्रताप के
भाले का वजन 80 किलो और कवच का वजन भी 80
किलो था। महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान
उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं। महाराणा प्रताप
के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना जो आज
हल्दी घटी में सुरक्षित है। महाराणा
प्रताप का घोडा चेतक महाराणा को 26 फीट का खाई पार
करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ।
उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वो खाई पार
कर गया। मेवाड़ राजघराने के वारिस को एकलिंग जी
भगवन का दीवान माना जाता है। छत्रपति
शिवाजी भी मूल रूप से मेवाड़ से थे
वीर शिवाजी के पर दादा उदैपुर महाराणा के
छोटे भाई थे।🔫 शासनकाल : 1568-1597
जन्म : 9 मई, 1540
जन्मस्थान : कुम्भलगढ़, जूनी कचेरी,
पाली
मृत्यु : 19 जनवरी, 1597 (उम्र 57)
पूर्ववर्ती महाराणा : महाराणा उदय सिंह
द्वितीय
वंश : 3 बेटे और 2 बेटियां
राज घराना : सूर्यवंशी राजपूत
पिता : महाराणा उदय सिंह द्वितीय
माता : महारानी जवंता बाई
मातृवत परदारेषु
महाराणा प्रताप के बेटे अमर सिंह ने युद्ध में मुगल सेनापति अब्दुल रहीम खां को परास्त करदिया। फिर उन्होंने मुगल सरदारों के साथ ही मुगलों के हरम को भी कब्जे में ले लिया।महाराणा प्रताप को जब यह समाचार मिला तो वह रुग्णावस्था में ही युद्ध क्षेत्र में जाकर अमर सिंह पर गरज पड़े, 'ऐसा नीच काम करने से पहले तू मर क्यों नहीं गया! हमारी भारतीय संस्कृति को कलंकित करते तुझे लाज न आई?
अमर सिंह पिता के सामने लज्जित खड़े रहे। महाराणा प्रताप ने तत्काल मुगल हरम में पहुंचकर बड़ी बेगम को प्रणाम करते हुए कहा,'बड़ी बी साहिबा, जो सिर शहंशाह अकबर के सामने नहीं झुका, वह आपके सामने झुकाता हूं। मेरे बेटे से जो अपराध हुआ, उसे क्षमा करें। हमारे लिए स्त्री पूजनीय है, आप लोगों को बंदी बनाकर उसने हमारी संस्कृति का अपमान किया है।'
उधर शहंशाह अकबर ने जब मुगल हरम की चिंता करते हुए सेनापति अब्दुल रहीम खां को फटकारा तो उसने बादशाह को आश्वस्त करते हुए कहा, 'बेगम वहां उसी तरह महफूज हैं, जिस तरह शाही महल में रहती हैं।'
इस पर अकबर ने कहा, 'पर महाराणा प्रताप से हमारी जंग चल रही है।'इस पर सेनापति बोले,'बादशाह सलामत, महाराणा प्रताप हिंदुस्तानी संस्कृति के रक्षक हैं, वह बेगम को कुछ नहीं होने देंगे।' शहंशाह अकबर शांत तो हुए मगर उनकी फिक्र कम न हुई। जब दूसरे दिन राजपूत सैनिकों की कड़ी सुरक्षा में राजकीय सम्मान के साथ शाही बेगमों की पालकी आगरा के किले में पहुंची तो बादशाह अकबर ने कहा, 'महाराणा प्रताप जैसा राजा इतिहास में कम ही पैदा होता है। वे हिंदुस्तानी तहजीब के भी सच्चे रखवाले हैं।'
जय आर्यवर्त
ReplyDeleteजय माहाराणा प्रताप