रूद्राक्ष उत्पत्ति की कथा:- स्कन्ध पुराण के
अनुसार प्राचीन समय में पाताल लोक का राजा
मय बड़ा ही बलशाली, शुरवीर, महापराक्रमी और
अजय राजा था । एक बार उसके मन में लौभ आया
और पाताल से निकलकर अन्य लोको पर विजय
प्राप्त की जाए एैसा मन में विचार किया ।
विचार के अनुसार पाताल लोक के दानवों ने अन्य
लोकों के ऊपर आक्रमण कर दिया और अपने बल के मद
में चुर मय ने हिमालय पर्वत के तीनों श्रृंगों पर तीन
पूल बनाए । जिनमें से एक सोने का, एक चाॅदी का
और एक लोहे का था । इस प्रकार सभी देवताओं के
स्थान पर पाताल लोक के लोगों का वहां राज्य
हो गया । सभी देवतागण इधन-उधर गुफा आदि में
छुपकर अपना जीवन व्यतित करने लगे । अन्त में सभी
देवतागण ब्रह्माजी के पास गये और उनसे प्रार्थना
की कि पाताल लोक के महापराक्रमी त्रिपुरासुरों
से हमारी रक्षा करें । तब ब्रह्माजी ने उनसे कहा कि
त्रिपुरासुर इस समय महापराक्रमी हैं । समय और
भाग्य उसका साथ दे रहा हैं । अतः हम सभी को
त्रिलोकीनाथ भगवान विष्णु की शरण में चलना
चाहिए । हमारा मनोरथ अवश्य ही पूर्ण होगा । इस
प्रकार ब्रह्माजी सहित समस्त देवगण विष्णु लोक
पहुॅचकर भगवान विष्णु की स्तुति करने लगें । देवगणों
ने अपनी करूण कथा भगवान विष्णु को सुनाई और
अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना की । भगवान विष्णु
ने भी ब्रह्माजी की तरह भगवान शिव की शरण में
जाने को कहा । तत्प्श्चात सभी देवगण भगवान शिव
के पास कैलाश पर्वत पहुॅचे वहां उन्होने प्रभु से शरण
मांगी और अपने जीवन की रक्षा हेतु प्रार्थना की
। तब भगवान विष्णु और ब्रह्मा आदि सहित सभी
देवतागण व स्वयं भगवान शिव पृथ्वी मंडल पर रथ को
लेकर, तथा अपना धनुष बाण लेकर और स्वयं भगवान
विष्णु दिव्य बाण बनकर भगवान शिव के सामने
उपस्थित हुए । इस प्रकार भगवान शिव ने सागर स्वरूप
तूणिर को बांध युद्ध के लिए रवाना हुए ।
त्रिपुरासुरों के नगर में पहुॅचकर भगवान शिव ने
शुलमणी भगवान नारायण स्वरूप धारण कर अमोघ
बाण को धनुष में चढ़ाकर निशाना साधते हुए
त्रिपुरासुर पर प्रहार किया जिससे त्रिपुरासुरों के
तीनों त्रिपुर के जलते ही हाहाकार मच गई । त्रिपुर
के दाह के समय भगवान शिव ने अपने रोद्र शरीर को
धारण कर लिया और अपनी युद्ध की थकान मिटाने
हेतु सुन्दर शिखर पर विश्राम करने हेतु पहुॅचे । विश्राम
के बाद भगवान शिव जोर-जोर से हंसने लगे । भगवान
रूद्र के नेत्रों से चार आॅसु टपक पड़े। उन्हीं चार बूंद
अश्रुओं के उस शेल शिखर पर गिर जाने से चार अंकुर
पैदा हुए । समयानुसार अंकुर बड़े होने से कोई पत्र,
पुष्प व फल आदि से हरे-भरे हो गये और रूद्र के
अश्रुकणों से उत्पन्न ये वृक्ष रूद्राक्ष नाम से
विख्यात हुए ।
अनुसार प्राचीन समय में पाताल लोक का राजा
मय बड़ा ही बलशाली, शुरवीर, महापराक्रमी और
अजय राजा था । एक बार उसके मन में लौभ आया
और पाताल से निकलकर अन्य लोको पर विजय
प्राप्त की जाए एैसा मन में विचार किया ।
विचार के अनुसार पाताल लोक के दानवों ने अन्य
लोकों के ऊपर आक्रमण कर दिया और अपने बल के मद
में चुर मय ने हिमालय पर्वत के तीनों श्रृंगों पर तीन
पूल बनाए । जिनमें से एक सोने का, एक चाॅदी का
और एक लोहे का था । इस प्रकार सभी देवताओं के
स्थान पर पाताल लोक के लोगों का वहां राज्य
हो गया । सभी देवतागण इधन-उधर गुफा आदि में
छुपकर अपना जीवन व्यतित करने लगे । अन्त में सभी
देवतागण ब्रह्माजी के पास गये और उनसे प्रार्थना
की कि पाताल लोक के महापराक्रमी त्रिपुरासुरों
से हमारी रक्षा करें । तब ब्रह्माजी ने उनसे कहा कि
त्रिपुरासुर इस समय महापराक्रमी हैं । समय और
भाग्य उसका साथ दे रहा हैं । अतः हम सभी को
त्रिलोकीनाथ भगवान विष्णु की शरण में चलना
चाहिए । हमारा मनोरथ अवश्य ही पूर्ण होगा । इस
प्रकार ब्रह्माजी सहित समस्त देवगण विष्णु लोक
पहुॅचकर भगवान विष्णु की स्तुति करने लगें । देवगणों
ने अपनी करूण कथा भगवान विष्णु को सुनाई और
अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना की । भगवान विष्णु
ने भी ब्रह्माजी की तरह भगवान शिव की शरण में
जाने को कहा । तत्प्श्चात सभी देवगण भगवान शिव
के पास कैलाश पर्वत पहुॅचे वहां उन्होने प्रभु से शरण
मांगी और अपने जीवन की रक्षा हेतु प्रार्थना की
। तब भगवान विष्णु और ब्रह्मा आदि सहित सभी
देवतागण व स्वयं भगवान शिव पृथ्वी मंडल पर रथ को
लेकर, तथा अपना धनुष बाण लेकर और स्वयं भगवान
विष्णु दिव्य बाण बनकर भगवान शिव के सामने
उपस्थित हुए । इस प्रकार भगवान शिव ने सागर स्वरूप
तूणिर को बांध युद्ध के लिए रवाना हुए ।
त्रिपुरासुरों के नगर में पहुॅचकर भगवान शिव ने
शुलमणी भगवान नारायण स्वरूप धारण कर अमोघ
बाण को धनुष में चढ़ाकर निशाना साधते हुए
त्रिपुरासुर पर प्रहार किया जिससे त्रिपुरासुरों के
तीनों त्रिपुर के जलते ही हाहाकार मच गई । त्रिपुर
के दाह के समय भगवान शिव ने अपने रोद्र शरीर को
धारण कर लिया और अपनी युद्ध की थकान मिटाने
हेतु सुन्दर शिखर पर विश्राम करने हेतु पहुॅचे । विश्राम
के बाद भगवान शिव जोर-जोर से हंसने लगे । भगवान
रूद्र के नेत्रों से चार आॅसु टपक पड़े। उन्हीं चार बूंद
अश्रुओं के उस शेल शिखर पर गिर जाने से चार अंकुर
पैदा हुए । समयानुसार अंकुर बड़े होने से कोई पत्र,
पुष्प व फल आदि से हरे-भरे हो गये और रूद्र के
अश्रुकणों से उत्पन्न ये वृक्ष रूद्राक्ष नाम से
विख्यात हुए ।
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