*#हिन्दुओं याद रखना #मोदी,#योगी,और #शाह,इनकी #ईमानदारी पे कभी शक मत करना,,क्योंकि ये कोई नेता नही

Thursday, 27 August 2015

Shri Krishna ki maya

सुदामा ने एक बार श्रीकृष्ण ने पूछा कान्हा, मैंआपकी
माया के दर्शन करना चाहता हूं... कैसी होती
है?"श्री कृष्ण ने टालना चाहा, लेकिन सुदामा की
जिद परश्री कृष्ण ने कहा, "अच्छा, कभी वक्तआएगा
तो बताऊंगा|"और फिर एक दिन कहने लगे...
सुदामा,आओ, गोमती में स्नान करने चलें| दोनों
गोमती के तट परगए| वस्त्र उतारे| दोनों नदी में उतरे...
श्रीकृष्ण स्नान करकेतट पर लौट आए| पीतांबर पहनने
लगे... सुदामा ने देखा,कृष्ण तो तट पर चला गया है, मैं
एक डुबकी औरलगा लेता हूं... और जैसे ही सुदामा ने
डुबकी लगाई...भगवान ने उसे अपनी माया का दर्शन
कर दिया|सुदामा को लगा, गोमती में बाढ़ आ गई है,
वह बहे जा रहे हैं,सुदामा जैसे-तैसे तक घाट के किनारे
रुके| घाट पर चढ़े| घूमनेलगे| घूमते-घूमते गांव के पास आए|
वहां एक हथिनी ने उनकेगले में फूल माला पहनाई|
सुदामा हैरान हुए| लोग इकट्ठेहो गए| लोगों ने कहा,
"हमारे देश के राजा की मृत्यु हो गईहै| हमारा नियम
है, राजा की मृत्यु के बाद हथिनी, जिसभी व्यक्ति
के गले में माला पहना दे,वही हमारा राजा होता है|
हथिनी ने आपके गले मेंमाला पहनाई है, इसलिए अब
आप हमारे राजा हैं|"सुदामा हैरान हुआ| राजा बन
गया| एक राजकन्याके साथउसका विवाह भी हो
गया| दो पुत्र भी पैदा हो गए| एकदिन सुदामा की
पत्नी बीमार पड़ गई... आखिर मर गई...सुदामा दुख से
रोने लगा... उसकी पत्नी जो मर गई थी,जिसे वह बहुत
चाहता था, सुंदर थी, सुशील थी... लोगइकट्ठे हो
गए... उन्होंने सुदामा को कहा, आप रोएं नहीं,आप
हमारे राजा हैं... लेकिन रानी जहां गई है, वहीं
आपको भी जाना है, यह मायापुरी का नियम है|
आपकी पत्नी को चिता में अग्नि दी
जाएगी...आपको भी अपनी पत्नी की चिता में
प्रवेश करना होगा...आपको भी अपनी पत्नी के साथ
जाना होगा|सुना,तो सुदामा की सांस रुक गई...
हाथ-पांव फुल गए... अब मुझेभी मरना होगा... मेरी
पत्नी की मौत हुई है,मेरी तो नहीं... भला मैं क्यों
मरूं... यह कैसा नियम है?सुदामा अपनी पत्नी की मृत्यु
को भूल गया...उसका रोना भी बंद हो गया| अब वह
स्वयं की चिंता में डूबगया... कहाभी, 'भई, मैं तो
मायापुरी का वासी नहीं हूं...मुझ पर आपकी नगरी
का कानून लागू नहीं होता... मुझेक्यों जलना होगा|'
लोग नहीं माने, कहा, 'अपनी पत्नी केसाथ आपको
भी चिता में जलना होगा... मरना होगा...यहयहां
का नियम है|' आखिर सुदामा ने कहा, 'अच्छा
भई,चिता में जलने से पहले मुझे स्नान तो कर लेनेदो...'
लोगमाने नहीं... फिर उन्होंने हथियारबंदलोगों की
ड्यूटी लगा दी... सुदामा को स्नान करने दो...देखना
कहीं भाग न जाए... रह-रह कर सुदामा रो उठता|
सुदामा इतना डर गया कि उसके हाथ-पैर कांपने लगे...
वहनदी में उतरा... डुबकी लगाई... और फिर जैसे ही
बाहरनिकला... उसने देखा, मायानगरी कहीं भी
नहीं, किनारे परतो कृष्ण अभी अपना पीतांबर ही
पहन रहे थे... और वह एकदुनिया घूम आया है| मौत के मुंह
से बचकरनिकला है...सुदामा नदी से बाहर आया...
सुदामा रोएजा रहा था| श्रीकृष्ण हैरान हुए... सबकुछ
जानते थे... फिरभी अनजान बनते हुए पूछा, "सुदामा
तुम रो क्यों रो रहेहो?"सुदामा ने कहा, "कृष्ण मैंने जो
देखा है, वह सचथा या यह जो मैं देख रहा हूं|" श्रीकृष्ण
मुस्कराए, कहा,"जो देखा, भोगा वह सच नहीं था|
भ्रम था... स्वप्न था...माया थी मेरी और जो तुम अब
मुझे देख रहे हो... यही सचहै... मैं ही सच हूं...मेरे से
भिन्न, जो भी है, वहमेरी माया ही है| और जो मुझे
ही सर्वत्र देखता है,महसूसकरता है, उसे मेरी माया
स्पर्श नहीं करती| माया स्वयंका विस्मरण है...माया
अज्ञान है, माया परमात्मा सेभिन्न... माया नर्तकी
है... नाचती है... नाचती है... लेकिनजो श्रीकृष्ण से
जुड़ा है, वह नाचता नहीं... भ्रमितनहीं होता...
माया से निर्लेप रहता है, वह जान जाता है,सुदामा
भी जान गया था... जो जान गया वह श्रीकृष्ण
सेअलग कैसे रह सकता है। राधे राधे 

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