*#हिन्दुओं याद रखना #मोदी,#योगी,और #शाह,इनकी #ईमानदारी पे कभी शक मत करना,,क्योंकि ये कोई नेता नही

Tuesday, 29 December 2015

Hindu navbarsh हिम्मत करके पढिऐ फिर HAPPY NEW YEAR मना लेना

Pls read

ना तो जनवरी साल का पहला मास है और ना ही 1 जनवरी पहला दिन ..

जो आज तक जनवरी को पहला महीना मानते आए है वो जरा इस बात पर विचार करिए ..

सितंबर, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर क्रम से 7वाँ, 8वाँ, नौवाँ और दसवाँ महीना होना चाहिए जबकि ऐसा नहीं है .. ये क्रम से 9वाँ,10वाँ,11वां और
 बारहवाँ महीना है .. हिन्दी में सात को सप्त, आठ को अष्ट कहा जाता है, इसे अग्रेज़ी में sept(सेप्ट) तथा oct(ओक्ट) कहा जाता है .. इसी से september तथा October बना ..

नवम्बर में तो सीधे-सीधे हिन्दी के "नव" को ले लिया गया है तथा दस अंग्रेज़ी में "Dec" बन जाता है जिससे
December बन गया ..

ऐसा इसलिए कि 1752 के पहले दिसंबर दसवाँ महीना ही हुआ करता था। इसका एक प्रमाण और है ..

जरा विचार करिए कि 25 दिसंबर यानि क्रिसमस को X-mas क्यों कहा जाता है????
इसका उत्तर ये है की "X" रोमन लिपि में दस का प्रतीक है और mas यानि मास अर्थात महीना .. चूंकि दिसंबर दसवां महीना हुआ करता था इसलिए 25 दिसंबर दसवां महीना यानि X-mas से प्रचलित हो गया ..

इन सब बातों से ये निष्कर्ष निकलता है
 की या तो अंग्रेज़ हमारे पंचांग के अनुसार ही चलते थे या तो उनका 12 के बजाय 10 महीना ही हुआ करता था ..

साल को 365 के बजाय 305 दिन
 का रखना तो बहुत बड़ी मूर्खता है तो ज्यादा संभावना इसी बात की है कि प्राचीन काल में अंग्रेज़ भारतीयों के प्रभाव में थे इस कारण सब कुछ भारतीयों जैसा ही करते थे और इंगलैण्ड ही क्या पूरा विश्व ही भारतीयों के प्रभाव में था जिसका प्रमाण ये है कि नया साल भले ही वो 1 जनवरी को माना लें पर उनका नया बही-खाता 1 अप्रैल से शुरू होता है ..

लगभग पूरे विश्व में वित्त-वर्ष अप्रैल से लेकर मार्च तक होता है यानि मार्च में अंत और अप्रैल से शुरू..

भारतीय अप्रैल में अपना नया साल मनाते थे तो क्या ये इस बात का प्रमाण नहीं है कि पूरे विश्व को भारतीयों ने अपने अधीन रखा था।

इसका अन्य प्रमाण देखिए-अंग्रेज़
 अपना तारीख या दिन 12 बजे
 रात से बदल देते है .. दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है तो 12 बजे रात से नया दिन का क्या तुक बनता है ??

तुक बनता है भारत में नया दिन सुबह से गिना जाता है, सूर्योदय से करीब दो-ढाई घंटे पहले के समय को ब्रह्म-मुहूर्त्त की बेला कही जाती है और यहाँ से नए दिन की शुरुआत होती है.. यानि की करीब 5-5.30 के आस-पास और
 इस समय इंग्लैंड में समय 12 बजे के आस-पास का होता है।

चूंकि वो भारतीयों के प्रभाव में थे इसलिए वो अपना दिन भी भारतीयों के दिन से मिलाकर रखना चाहते थे ..

इसलिए उन लोगों ने रात के 12 बजे से ही दिन नया दिन और तारीख बदलने का नियम अपना लिया ..

जरा सोचिए वो लोग अब तक हमारे अधीन हैं, हमारा अनुसरण करते हैं,
और हम राजा होकर भी खुद अपने अनुचर का, अपने अनुसरणकर्ता का या सीधे-सीधी कहूँ तो अपने दास का ही हम दास बनने को बेताब हैं..

कितनी बड़ी विडम्बना है ये .. मैं ये नहीं कहूँगा कि आप आज 31 दिसंबर को रात के 12 बजने का बेशब्री से इंतजार ना करिए या 12 बजे नए साल की खुशी में दारू मत पीजिए या खस्सी-मुर्गा मत काटिए। मैं बस ये कहूँगा कि देखिए खुद को आप, पहचानिए अपने आपको ..

हम भारतीय गुरु हैं, सम्राट हैं किसी का अनुसरी नही करते है .. अंग्रेजों का दिया हुआ नया साल हमें नहीं चाहिये, जब सारे त्याहोर भारतीय संस्कृति के रीती रिवाजों के अनुसार ही मानते हैं तो नया साल क्यों नहीं?

वंदेमातरम् ।

Thursday, 27 August 2015

Shri Krishna ki maya

सुदामा ने एक बार श्रीकृष्ण ने पूछा कान्हा, मैंआपकी
माया के दर्शन करना चाहता हूं... कैसी होती
है?"श्री कृष्ण ने टालना चाहा, लेकिन सुदामा की
जिद परश्री कृष्ण ने कहा, "अच्छा, कभी वक्तआएगा
तो बताऊंगा|"और फिर एक दिन कहने लगे...
सुदामा,आओ, गोमती में स्नान करने चलें| दोनों
गोमती के तट परगए| वस्त्र उतारे| दोनों नदी में उतरे...
श्रीकृष्ण स्नान करकेतट पर लौट आए| पीतांबर पहनने
लगे... सुदामा ने देखा,कृष्ण तो तट पर चला गया है, मैं
एक डुबकी औरलगा लेता हूं... और जैसे ही सुदामा ने
डुबकी लगाई...भगवान ने उसे अपनी माया का दर्शन
कर दिया|सुदामा को लगा, गोमती में बाढ़ आ गई है,
वह बहे जा रहे हैं,सुदामा जैसे-तैसे तक घाट के किनारे
रुके| घाट पर चढ़े| घूमनेलगे| घूमते-घूमते गांव के पास आए|
वहां एक हथिनी ने उनकेगले में फूल माला पहनाई|
सुदामा हैरान हुए| लोग इकट्ठेहो गए| लोगों ने कहा,
"हमारे देश के राजा की मृत्यु हो गईहै| हमारा नियम
है, राजा की मृत्यु के बाद हथिनी, जिसभी व्यक्ति
के गले में माला पहना दे,वही हमारा राजा होता है|
हथिनी ने आपके गले मेंमाला पहनाई है, इसलिए अब
आप हमारे राजा हैं|"सुदामा हैरान हुआ| राजा बन
गया| एक राजकन्याके साथउसका विवाह भी हो
गया| दो पुत्र भी पैदा हो गए| एकदिन सुदामा की
पत्नी बीमार पड़ गई... आखिर मर गई...सुदामा दुख से
रोने लगा... उसकी पत्नी जो मर गई थी,जिसे वह बहुत
चाहता था, सुंदर थी, सुशील थी... लोगइकट्ठे हो
गए... उन्होंने सुदामा को कहा, आप रोएं नहीं,आप
हमारे राजा हैं... लेकिन रानी जहां गई है, वहीं
आपको भी जाना है, यह मायापुरी का नियम है|
आपकी पत्नी को चिता में अग्नि दी
जाएगी...आपको भी अपनी पत्नी की चिता में
प्रवेश करना होगा...आपको भी अपनी पत्नी के साथ
जाना होगा|सुना,तो सुदामा की सांस रुक गई...
हाथ-पांव फुल गए... अब मुझेभी मरना होगा... मेरी
पत्नी की मौत हुई है,मेरी तो नहीं... भला मैं क्यों
मरूं... यह कैसा नियम है?सुदामा अपनी पत्नी की मृत्यु
को भूल गया...उसका रोना भी बंद हो गया| अब वह
स्वयं की चिंता में डूबगया... कहाभी, 'भई, मैं तो
मायापुरी का वासी नहीं हूं...मुझ पर आपकी नगरी
का कानून लागू नहीं होता... मुझेक्यों जलना होगा|'
लोग नहीं माने, कहा, 'अपनी पत्नी केसाथ आपको
भी चिता में जलना होगा... मरना होगा...यहयहां
का नियम है|' आखिर सुदामा ने कहा, 'अच्छा
भई,चिता में जलने से पहले मुझे स्नान तो कर लेनेदो...'
लोगमाने नहीं... फिर उन्होंने हथियारबंदलोगों की
ड्यूटी लगा दी... सुदामा को स्नान करने दो...देखना
कहीं भाग न जाए... रह-रह कर सुदामा रो उठता|
सुदामा इतना डर गया कि उसके हाथ-पैर कांपने लगे...
वहनदी में उतरा... डुबकी लगाई... और फिर जैसे ही
बाहरनिकला... उसने देखा, मायानगरी कहीं भी
नहीं, किनारे परतो कृष्ण अभी अपना पीतांबर ही
पहन रहे थे... और वह एकदुनिया घूम आया है| मौत के मुंह
से बचकरनिकला है...सुदामा नदी से बाहर आया...
सुदामा रोएजा रहा था| श्रीकृष्ण हैरान हुए... सबकुछ
जानते थे... फिरभी अनजान बनते हुए पूछा, "सुदामा
तुम रो क्यों रो रहेहो?"सुदामा ने कहा, "कृष्ण मैंने जो
देखा है, वह सचथा या यह जो मैं देख रहा हूं|" श्रीकृष्ण
मुस्कराए, कहा,"जो देखा, भोगा वह सच नहीं था|
भ्रम था... स्वप्न था...माया थी मेरी और जो तुम अब
मुझे देख रहे हो... यही सचहै... मैं ही सच हूं...मेरे से
भिन्न, जो भी है, वहमेरी माया ही है| और जो मुझे
ही सर्वत्र देखता है,महसूसकरता है, उसे मेरी माया
स्पर्श नहीं करती| माया स्वयंका विस्मरण है...माया
अज्ञान है, माया परमात्मा सेभिन्न... माया नर्तकी
है... नाचती है... नाचती है... लेकिनजो श्रीकृष्ण से
जुड़ा है, वह नाचता नहीं... भ्रमितनहीं होता...
माया से निर्लेप रहता है, वह जान जाता है,सुदामा
भी जान गया था... जो जान गया वह श्रीकृष्ण
सेअलग कैसे रह सकता है। राधे राधे 

रूद्राक्ष उत्पत्ति की कथा

रूद्राक्ष उत्पत्ति की कथा:- स्कन्ध पुराण के
अनुसार प्राचीन समय में पाताल लोक का राजा
मय बड़ा ही बलशाली, शुरवीर, महापराक्रमी और
अजय राजा था । एक बार उसके मन में लौभ आया
और पाताल से निकलकर अन्य लोको पर विजय
प्राप्त की जाए एैसा मन में विचार किया ।
विचार के अनुसार पाताल लोक के दानवों ने अन्य
लोकों के ऊपर आक्रमण कर दिया और अपने बल के मद
में चुर मय ने हिमालय पर्वत के तीनों श्रृंगों पर तीन
पूल बनाए । जिनमें से एक सोने का, एक चाॅदी का
और एक लोहे का था । इस प्रकार सभी देवताओं के
स्थान पर पाताल लोक के लोगों का वहां राज्य
हो गया । सभी देवतागण इधन-उधर गुफा आदि में
छुपकर अपना जीवन व्यतित करने लगे । अन्त में सभी
देवतागण ब्रह्माजी के पास गये और उनसे प्रार्थना
की कि पाताल लोक के महापराक्रमी त्रिपुरासुरों
से हमारी रक्षा करें । तब ब्रह्माजी ने उनसे कहा कि
त्रिपुरासुर इस समय महापराक्रमी हैं । समय और
भाग्य उसका साथ दे रहा हैं । अतः हम सभी को
त्रिलोकीनाथ भगवान विष्णु की शरण में चलना
चाहिए । हमारा मनोरथ अवश्य ही पूर्ण होगा । इस
प्रकार ब्रह्माजी सहित समस्त देवगण विष्णु लोक
पहुॅचकर भगवान विष्णु की स्तुति करने लगें । देवगणों
ने अपनी करूण कथा भगवान विष्णु को सुनाई और
अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना की । भगवान विष्णु
ने भी ब्रह्माजी की तरह भगवान शिव की शरण में
जाने को कहा । तत्प्श्चात सभी देवगण भगवान शिव
के पास कैलाश पर्वत पहुॅचे वहां उन्होने प्रभु से शरण
मांगी और अपने जीवन की रक्षा हेतु प्रार्थना की
। तब भगवान विष्णु और ब्रह्मा आदि सहित सभी
देवतागण व स्वयं भगवान शिव पृथ्वी मंडल पर रथ को
लेकर, तथा अपना धनुष बाण लेकर और स्वयं भगवान
विष्णु दिव्य बाण बनकर भगवान शिव के सामने
उपस्थित हुए । इस प्रकार भगवान शिव ने सागर स्वरूप
तूणिर को बांध युद्ध के लिए रवाना हुए ।
त्रिपुरासुरों के नगर में पहुॅचकर भगवान शिव ने
शुलमणी भगवान नारायण स्वरूप धारण कर अमोघ
बाण को धनुष में चढ़ाकर निशाना साधते हुए
त्रिपुरासुर पर प्रहार किया जिससे त्रिपुरासुरों के
तीनों त्रिपुर के जलते ही हाहाकार मच गई । त्रिपुर
के दाह के समय भगवान शिव ने अपने रोद्र शरीर को
धारण कर लिया और अपनी युद्ध की थकान मिटाने
हेतु सुन्दर शिखर पर विश्राम करने हेतु पहुॅचे । विश्राम
के बाद भगवान शिव जोर-जोर से हंसने लगे । भगवान
रूद्र के नेत्रों से चार आॅसु टपक पड़े। उन्हीं चार बूंद
अश्रुओं के उस शेल शिखर पर गिर जाने से चार अंकुर
पैदा हुए । समयानुसार अंकुर बड़े होने से कोई पत्र,
पुष्प व फल आदि से हरे-भरे हो गये और रूद्र के
अश्रुकणों से उत्पन्न ये वृक्ष रूद्राक्ष नाम से
विख्यात हुए ।

Wednesday, 12 August 2015

Karmo ka fal

कर्मों का फल तो झेलना पडे़गा।

...
एक दृष्टान्त:-

भीष्म पितामह रणभूमि में
शरशैया पर पड़े थे।
हल्का सा भी हिलते तो शरीर में घुसे बाण भारी वेदना के साथ रक्त की पिचकारी सी छोड़ देते।

ऐसी दशा में उनसे मिलने सभी आ जा रहे थे। श्री कृष्ण भी दर्शनार्थ आये। उनको देखकर भीष्म जोर से हँसे और कहा.... आइये जगन्नाथ।.. आप तो सर्व ज्ञाता हैं। सब जानते हैं, बताइए मैंने ऐसा क्या पाप किया था जिसका दंड इतना भयावह मिला?

कृष्ण: पितामह! आपके पास वह शक्ति है, जिससे आप अपने पूर्व जन्म देख सकते हैं। आप स्वयं ही देख लेते।

भीष्म: देवकी नंदन! मैं यहाँ अकेला पड़ा और कर ही क्या रहा हूँ? मैंने सब देख लिया ...अभी तक 100 जन्म देख चुका हूँ। मैंने उन 100 जन्मो में एक भी कर्म ऐसा नहीं किया जिसका परिणाम ये हो कि मेरा पूरा शरीर बिंधा पड़ा है, हर आने वाला क्षण ...और पीड़ा लेकर आता है।

कृष्ण: पितामह ! आप एक भव और पीछे जाएँ, आपको उत्तर मिल जायेगा।

भीष्म ने ध्यान लगाया और देखा कि 101 भव पूर्व वो एक नगर के राजा थे। ...एक मार्ग से अपनी सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ कहीं जा रहे थे।
एक सैनिक दौड़ता हुआ आया और बोला "राजन! मार्ग में एक सर्प पड़ा है। यदि हमारी टुकड़ी उसके ऊपर से गुजरी तो वह मर जायेगा।"

भीष्म ने कहा " एक काम करो। उसे किसी लकड़ी में लपेट कर झाड़ियों में फेंक दो।"

सैनिक ने वैसा ही किया।...उस सांप को एक लकड़ी में लपेटकर झाड़ियों में फेंक दिया।

दुर्भाग्य से झाडी कंटीली थी। सांप उनमें फंस गया। जितना प्रयास उनसे निकलने का करता और अधिक फंस जाता।... कांटे उसकी देह में गड गए। खून रिसने लगा। धीरे धीरे वह मृत्यु के मुंह में जाने लगा।... 5-6 दिन की तड़प के बाद उसके प्राण निकल पाए।
....

भीष्म: हे त्रिलोकी नाथ। आप जानते हैं कि मैंने जानबूझ कर ऐसा नहीं किया। अपितु मेरा उद्देश्य उस सर्प की रक्षा था। तब ये परिणाम क्यों?

कृष्ण: तात श्री! हम जान बूझ कर क्रिया करें या अनजाने में ...किन्तु क्रिया तो हुई न। उसके प्राण तो गए ना।... ये विधि का विधान है कि जो क्रिया हम करते हैं उसका फल भोगना ही पड़ता है।.... आपका पुण्य इतना प्रबल था कि 101 भव उस पाप फल को उदित होने में लग गए। किन्तु अंततः वह हुआ।....

जिस जीव को लोग जानबूझ कर मार रहे हैं... उसने जितनी पीड़ा सहन की.. वह उस जीव (आत्मा) को इसी जन्म अथवा अन्य किसी जन्म में अवश्य भोगनी होगी।

अतः हर दैनिक क्रिया सावधानी पूर्वक करें।.
👌👌👌
जीवन मे कैसा भी दुख और कष्ट  आये पर भक्ति मत छोडिए

क्या कष्ट आता है तो आप भोजन करना छोड देते है ?
क्या बीमारी आती है तो ? आप सांस लेना छोड देते है ?        
नही ना !
फिर जरा - सी तकलीफ़ आने पर आप भक्ति करना क्यों छोड़ देते हो ?
कभी भी दो चीज मत छोडिए - भजन और भोजन !

भोजन छोड. दोगे तो ज़िंदा नही रहोगे !
भजन छोड. दोगे तो कही के नही रहोगे
सही मायने में भजन ही भोजन है l💐👏💐

Tuesday, 2 June 2015

jai shri krishn(माधव मुस्करा के बोले कोई किसी के यहाँ सिर्फ तीन वजह से खाता है 1.भाव में 2.अभाव में 3.प्रभाव में

भाव प्रधान सन्देश......

महाभारत का युद्ध रोकने के अंतिम प्रयास हेतू
स्वयं श्री कृष्ण
शांती प्रस्ताव लेकर
ह्स्तीनापुर पहूँचे..

कुटिल शकूनी ने कृष्ण को भोजन पर
आमंत्रित  करने की
योजना बनाई..

स्वयं दुर्योधन ने उनको निमंत्रण
दिया..

कृष्ण तो फिर कृष्ण है..
निमंत्रण अस्वीकार कर
दिया
और जा पहूँचे विदूर के घर..
विदुरानी कृष्ण पर
अपार स्नेह रखती थी..

अचानक कृष्ण को देख
भावुक हो गई.
कृष्ण ने जब कहा क़ि
भूख लगी है
तो तुरतं केले ले आई..
और बेसुधी में
गूदा तो फेक देती
और छिलका खिला देती.
माधव भी
बिना कुछ कहे
प्रेम से खाते रहे..

बात फैली..

दुर्योधन जो कृष्ण से बैर भाव रखता था
ताना मारके बोला..
केशव मैने तो छप्पन भोग बनवाये थे
पर आपको तो
छिलके ही पंसद आये..

माधव मुस्करा के बोले
कोई किसी के यहाँ
सिर्फ तीन वजह से खाता है....

1.भाव में
2.अभाव में
3.प्रभाव में

भाव तुझमें है नहीं..
अभाव मुझे है नहीं
और प्रभाव तेरा
मै मानता नहीं.
अब तू ही बता
कैसे तुम्हारा
निमंत्रण स्वीकार करता..

मैं वहीं गया
जहाँ मुझे जाना चाहिये था.
मै भोजन का नहीं
भाव का भूखा हूँ
और हमेशा रहूँगा.

दुर्योधन के पास
कोई जवाब ना था..

          🌹जय श्री क्रष्ण

Sunday, 31 May 2015

हनुमानजी की रामभक्ति की गाथा संसार में भर में गाई जाती है. लक्ष्मणजी की भक्ति भी अद्भुत थी. लक्ष्मणजी की कथा के बिना श्रीरामकथा पूर्ण नहीं है.

🙏🚩🙏🚩ऊँ 🙏🚩🙏🚩


भक्तिकथा

हनुमानजी की रामभक्ति की गाथा संसार में भर में गाई जाती है. लक्ष्मणजी की भक्ति भी अद्भुत थी. लक्ष्मणजी की कथा के बिना श्रीरामकथा पूर्ण नहीं है.

अगस्त्य मुनि अयोध्या आए और लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया. भगवान श्रीराम ने बताया कि उन्होंने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा.

अगस्त्य मुनि बोले- श्रीराम बेशक रावण और कुंभकर्ण प्रचंड वीर थे, लेकिन सबसे बड़ा वीर तो मेघनाध ही था. उसने अंतरिक्ष में स्थित होकर इंद्र से युद्ध किया था और बांधकर लंका ले आया था. ब्रह्मा ने इंद्रजीत से दान के रूप में इंद्र को मांगा तब इंद्र मुक्त हुए थे. लक्ष्मण ने उसका वध किया इसलिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए.

श्रीराम को आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे. फिर भी उनके मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल था.

अगस्त्य मुनि ने कहा- प्रभु इंद्रजीत को वरदान था कि उसका वध वही कर सकता था जो चौदह वर्षों तक न सोया हो, जिसने चौदह साल तक किसी स्त्री का मुख न देखा हो और चौदह साल तक भोजन न किया हो.

श्रीराम बोले- परंतु मैं बनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल-फूल देता रहा. मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था, बगल की कुटी में लक्ष्मण थे, फिर सीता का मुख भी न देखा हो, और चौदह वर्षों तक सोए न हों, ऐसा कैसे संभव है.

अगस्त्य मुनि सारी बात समझकर मुस्कुराए. प्रभु से कुछ छुपा है भला! दरअसल, सभी लोग सिर्फ श्रीराम का गुणगान करते थे लेकिन प्रभु चाहते थे कि लक्ष्मण के तप और वीरता की चर्चा भी अयोध्या के घर-घर में हो.

अगस्त्य मुनि ने कहा- क्यों न लक्ष्मणजी से पूछा जाए. लक्ष्मणजी आए. प्रभु ने कहा कि आपसे जो पूछा जाए उसे सच-सच कहिएगा.

प्रभु ने पूछा- हम तीनों चौदह वर्षों तक साथ रहे फिर तुमने सीता का मुख कैसे नहीं देखा, फल दिए गए फिर भी अनाहारी कैसे रहे और 14 साल तक सोए नहीं, यह कैसे हुआ.

लक्ष्मणजी ने बताया- भैया जब हम भाभी को तलाशते ऋष्यमूक पर्वत गए तो सुग्रीव ने हमें उनके आभूषण दिखाकर पहचानने को कहा. आपको स्मरण होगा मैं तो सिवाए उनके पैरों के नुपूर के कोई आभूषण नहीं पहचान पाया था क्योंकि मैंने कभी भी उनके चरणों के ऊपर देखा ही नहीं.

चौदह वर्ष नहीं सोने के बारे में सुनिए- आप औऱ माता एक कुटिया में सोते थे. मैं रातभर बाहर धनुष पर बाण चढ़ाए पहरेदारी में खड़ा रहता था. निद्रा ने मेरी आंखों पर कब्जा करने की कोशिश की तो मैंने निद्रा को अपने बाणों से बेध दिया था.

निद्रा ने हारकर स्वीकार किया कि वह चौदह साल तक मुझे स्पर्श नहीं करेगी लेकिन जब श्रीराम का अयोध्या में राज्याभिषेक हो रहा होगा और मैं उनके पीछे सेवक की तरह छत्र लिए खड़ा रहूंगा तब वह मुझे घेरेगी. आपको याद होगा राज्याभिषेक के समय मेरे हाथ से छत्र गिर गया था.

अब मैं 14 साल तक अनाहारी कैसे रहा! मैं जो फल-फूल लाता था आप उसके तीन भाग करते थे. एक भाग देकर आप मुझसे कहते थे लक्ष्मण फल रख लो. आपने कभी फल खाने को नहीं कहा- फिर बिना आपकी आज्ञा के मैं उसे खाता कैसे. मैंने उन्हें संभाल कर रख दिया. सभी फल उसी कुटिया में अभी भी रखे होंगे.

प्रभु के आदेश पर लक्ष्मणजी चित्रकूट की कुटिया में से वे सारे फलों की टोकरी लेकर आए और दरबार में रख दिया. फलों की गिनती हुई. सात दिन के हिस्से के फल नहीं थे. प्रभु ने कहा- इसका अर्थ है कि तुमने सात दिन तो आहार लिया था.

लक्ष्मणजी ने सात फल कम होने के बारे बताया- उन सात दिनों में फल आए ही नहीं. जिस दिन हमें पिताश्री के स्वर्गवासी होने की सूचना मिली, हम निराहारी रहे. जिस दिन रावण ने माता का हरण किया उस दिन फल लाने कौन जाता.

जिस दिन समुद्र की साधना कर आप उससे राह मांग रहे थे, जिस दिन आप इंद्रजीत के नागपाश में बंधकर दिनभर अचेत रहे, जिस दिन इंद्रजीत ने मायावी सीता को काटा था और हम शोक में रहे, जिस दिन रावण ने मुझे शक्ति मारी और जिस दिन आपने रावण-वध किया- इन दिनों में हमें भोजन की सुध कहां थी.

विश्वामित्र मुनि से मैंने एक अतिरिक्त विद्या का ज्ञान लिया था- बिना आहार किए जीने की विद्या. उसके प्रयोग से मैं चौदह साल तक अपनी भूख को नियंत्रित कर सका जिससे इंद्रजीत मारा गया.

भगवान श्रीराम ने लक्ष्मणजी की तपस्या के बारे में सुनकर उन्हें हृद्य से लगा लिया.

🙏🚩🙏🚩🙏🚩🙏🚩🙏

Friday, 29 May 2015

rashtriya swayamsevak sangh)संघ की शुरुआत सन् 1925 में विजयदशमी के दिन परमपूज्य डा०केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा की गयी थी

RSS👉 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या... है.....??

"राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विशुद्ध रूप से एक राष्ट्रवादी संघटन है", जिसके सिद्धान्त हिंदुत्व में निहित और  आधारित हैं।

संघ की शुरुआत सन् 1925 में विजयदशमी के दिन परमपूज्य डा०केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा की गयी थी और आपको यह जानकर काफी ख़ुशी होगी कि बीबीसी के अनुसार संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है।

भारत में संघ की लगभग पचास हजार से
भी ज्यादा शाखा लगती हैं और संघ में लगभग 25 करोड़ स्वयंसेवी हैं । वस्तुत: शाखा ही तो संघ की बुनियाद है जिसके ऊपर आज यह इतना विशाल संगठन खड़ा हुआ है।

शाखा की सामान्य गतिविधियों में खेल, योग वंदना और भारत एवं विश्व के सांस्कृतिक पहलुओं पर बौद्धिक चर्चा परिचर्चा शामिल है। जो भी सदस्य शाखा में स्वयं की इच्छा से आते हैं , वे "स्वयंसेवक" कहलाते हैं ...!

शाखा में बौद्धिक और शारीरिक रूप से स्वयंसेवकों को संघ की जानकारी तो दी ही जाती हैं साथ-साथ समाज, राष्ट्र और धर्म की शिक्षा भी दी जाती है.

सिर्फ इतना ही नहीं हिंदू धर्म में सामाजिक समानता के लिए संघ ने दलितों और पिछड़े वर्गों को मंदिर में पुजारी पद के लिए प्रशिक्षण का समर्थन किया है |

यहाँ तक कि ... महात्मा गाँधी के 1934 RSS के एक कैम्प की यात्रा के दोरान उन्होंने वहां पर पूर्ण अनुशासन पाया और छुआछूत की अनुपस्थिति पायी |

राहत और पुर्नवास संघ की पुरानी परंपरा रही है... उदाहरण के तौर पर संघ ने 1971 के उडीसा चक्रवात और 1977 के आंध्र प्रदेश चक्रवात में राहत कार्यों में महती भूमिका निभाई है |

इतना ही नहीं ... संघ से जुडी "सेवा भारती" ने जम्मू कश्मीर से आतंकवाद से परेशान 57 अनाथ बच्चों को गोद लिया हे जिनमे 38 मुस्लिम (जबकि मुस्लिम संघ को गाली देते हैं फिर भी और 19 हिंदू हैं |

संघ की उपस्थिति भारतीय समाज के हर क्षेत्र में महसूस की जा सकती है जिसकी शुरुआत सन 1925 से होती है। उदाहरण के तौर पर सन 1962 के भारत-चीन युद्ध में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू संघ की भूमिका से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने संघ को सन 1963 के गणतंत्र दिवस की परेड में सम्मिलित होने का निमन्त्रण दिया। और आप यह जान कर ख़ुशी से झूम उठेंगे कि.. सिर्फ़ दो दिनों की पूर्व सूचना पर तीन हजार से भी ज्यादा स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में वहाँ उपस्थित हो गये।

वर्तमान समय में संघ के दर्शन का पालन करने वाले कतिपय लोग देश के सर्वोच्च पदों तक पहुँचने मे भीं सफल रहे हैं। ऐसे प्रमुख व्यक्तियों में उपराष्ट्रपति पद पर भैरोंसिंह शेखावत, प्रधानमंत्री पद पर अटल बिहारी वाजपेयी एवं उपप्रधानमंत्री व गृहमंत्री के पद पर लालकृष्ण आडवाणी , नरेन्द्र भाई मोदी जैसे दिग्गज लोग शामिल हैं। इतना ही नहीं... जिस दिन सारे स्वयंसेवक सिर्फ एक लाइन बना कर ही सीमा पर खड़े हो गए उस दिन चीन से ले कर बांग्लादेश तक गणवेशधारी स्वयंसेवक ही स्वयंसेवक नजर आयेंगे !

इसीलिए ये शर्म नहीं बल्कि हमारे लिए काफी गर्व की बात होती है ....... जब हमें संघ का स्वयंसेवक कहा जाता है ....!
⛳राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ⛳
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ऐक वटवृक्ष है जिसके कई तने और कई शाखाये है।
संघ दुनिया के लगभग 80 से अधिक देशो में कार्यरत है।"संघ के लगभग 50 से ज्यादा संगठन राष्ट्रीय ओर अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है ओर लगभग 200 से अधिक संघठन क्षेत्रीय प्रभाव रखते हैं।
जिसमे कुछ प्रमुख संगठन है जो संघ की विचारधारा को आधार मानकर राष्ट्र और सामाज के बीच सक्रीय है।जिनमे कुछ राष्ट्रवादी,सामाजिक, राजनेतिक, युवा वर्गे के बीच में कार्य करने वाले,शिक्षा के क्षेत्र में,सेवा के क्षेत्र में,सुरक्षा के क्षेत्र में,धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में, संतो के बीच में, विदेशो में,अन्य कई क्षेत्रो में संघ परिवार के संघठन सक्रीय रहते है,जिनमे प्रमुख है:-
⛳🐅विश्व हिन्दू परिषद्
⛳🐅 बजरंगदल
⛳🐅अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्
⛳🐅सेवा भारती
⛳🐅भारतीय किसान संघ
⛳🐅भारतीय जनता पार्टी
⛳🐅भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा
⛳🐅भारतीय जनता पार्टी महिला मोर्चा👩
⛳🐅भारतीय मजदूर संघ
⛳🐅भारतीय शिक्षक संघ
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⛳🐅मातृशक्ति👩
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आओ नमन करे इस मातृभूमि को
और दुनिया के सबसे बड़े संघठन से जुड़े।।
⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳

      🚩हिंदुत्व का आधार।👊
                 👇👇👇
   ⛳"संघ शक्ति"⛳🐅🐅🐅
 
                (और)
    🚩 "संघ परिवार"!!🚩
🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Friday, 22 May 2015

मान सिंह जैसे गद्दारों की बजह से ही भारत में मुस्लिम शासन चला नहीं तो इतने बहादुर थे की विश्वविजेता अलेक्जेंडर ( सिकंदरयूनान) जैसे ने हार मान कर चले गए थे

 🔫: भारत में मुसलमानो के 800 वर्ष के शासन का झूठ क्या भारत में मुसलमानो
ने 800 वर्षो तक शासन किया है।
सुनने में यही आता है पर न कभी कोई आत्ममंथन करता है और न इतिहास
का सही अवलोकन।
प्रारम्भ करते है मुहम्मद बिन कासिम से।
भारत पर पहला आक्रमण मुहम्मद बिन ने 711 ई में सिंध पर किया। राजा
दाहिर पूरी शक्ति से लड़े और मुसलमानो के धोखे के शिकार होकर वीरगति
को प्राप्त हुए।
दूसरा हमला 735 में राजपुताना पर हुआ जब हज्जात ने सेना भेजकर बाप्पा
रावल के राज्य पर आक्रमण किया।
वीर बाप्पा रावल ने मुसलमानो को न केवल खदेड़ा बल्कि अफगानिस्तान तक
मुस्लिम राज्यो को रौंदते हुए अरब की सीमा तक पहुँच गए। ईरान
अफगानिस्तान के मुस्लिम सुल्तानों ने उन्हें अपनी पुत्रिया भेंट की और
उन्होंने 35 मुस्लिम लड़कियो से विवाह करके सनातन धर्म का डंका पुन
बजाया। बाप्पा रावल का इतिहास कही नहीं पढ़ाया जाता यहाँ तक की
अधिकतर इतिहासकर उनका नाम भी छुपाते है।
गिनती भर हिन्दू होंगे जो उनका नाम जानते है। दूसरे ही युद्ध में भारत से
इस्लाम समाप्त हो चूका था। ये था भारत में पहली बार इस्लाम का नाश अब
आगे बढ़ते है गजनवी पर। बाप्पा रावल के आक्रमणों से मुसलमान इतने
भयक्रांत हुए की अगले 300 सालो तक वे भारत से दूर रहे। इसके बाद महमूद
गजनवी ने 1002 से 1017 तक भारत पर कई आक्रमण किये पर हर बार उसे
भारत के हिन्दू राजाओ से कड़ा उत्तर मिला। महमूद गजनवी ने सोमनाथ पर
भी कई आक्रमण किये पर 17वे युद्ध में उसे सफलता मिली थी। सोमनाथ के
शिवलिंग को उसने तोडा नहीं था बल्कि उसे लूट कर वह काबा ले गया था
जिसका रहस्य आपके समक्ष जल्द ही रखता हु। यहाँ से उसे शिवलिंग तो
मिल गया जो चुम्बक का बना हुआ था पर खजाना नहीं मिला।
भारतीय राजाओ के निरंतर आक्रमण से वह वापिस गजनी लौट गया और
अगले 100 सालो तक कोई भी मुस्लिम आक्रमणकारी भारत पकर आक्रमण
न कर सका।
10098 में मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज राज चौहान को 16 युद्द के बाद
परास्त किया और अजमेर व् दिल्ली पर उसके गुलाम वंश के शासक जैसे
कुतुबुद्दीन इल्तुमिश व् बलबन दिल्ली से आगे न बढ़ सके। उन्हें हिन्दू
राजाओ के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। पश्चिमी द्वारा खुला रहा जहाँ
से बाद में ख़िलजी लोधी तुगलक आदि आये ख़िलजी भारत के उत्तरी भाग से
होते हुए बिहार बंगाल पहुँच गए। कूच बिहार व् बंगाल में मुसलमानो का राज्य
हो गया पर बिहार व् अवध प्रदेश मुसलमानो से अब भी दूर थे। शेष भारत में
केवल गुजरात ही मुसलमानो के अधिकार में था। अन्य भाग स्वतन्त्र थे
1526 में राणा सांगा ने इब्राहिम लोधी के विरुद्ध बाबर को बुलाया। बाबर ने
लोधियों की सत्ता तो उखाड़ दी पर वो भारत की सम्पन्नता देख यही रुक
गया और राणा सांगा को उसमे युद्ध में हरा दिया। चित्तोड़ तब भी स्वतंत्र
रहा पर अब दिल्ली मुगलो के अधिकार में थी।
हुमायूँ दिल्ली पर अधिकार नहीं कर पाया पर उसका बेटा अवश्य दिल्ली से
आगरा के भाग पर शासन करने में सफल रहा। तब तक कश्मीर भी मुसलमानो
के अधिकार में आ चूका था। अकबर पुरे जीवन महाराणा प्रताप से युद्ध में
व्यस्त रहा जो बाप्पा रावल के ही वंशज थे और उदय सिंह के पुत्र थे जिनके
पूर्वजो ने 700 सालो तक मुस्लिम आक्रमणकारियो का सफलतापूर्वक
सामना किया।
जहाँहुर व् शाहजहाँ भी राजपूतो से युद्धों में व्यस्त रहे व भारत के बाकी भाग
पर राज्य न कर पाये। दक्षिण में बीजापुर में तब तक इस्लाम शासन स्थापित
हो चुका था।
औरंगजेब के समय में मराठा शक्ति का उदय हुआ और शिवाजी महाराज से
लेकर पेशवाओ ने मुगलो की जड़े खोद डाली। शिवाजी महाराज द्वारा
स्थापित हिंदवी स्वराज्य को बाजीराव पेशवा ने भारत में हिमाचल बंगाल और
पुरे दक्षिण में फैलाया। दिल्ली में उन्होंने आक्रमण से पहले गौरी शंकर
भगवान् से मन्नत मांगी थी की यदि वे सफल रहे तो चांदनी चौक में वे भव्य
मंदिर बनाएंगे जहाँ कभी पीपल के पेड़ के नीचे 5 शिवलिंग रखे थे। बाजीराव ने
दिल्ली पर अधिकार किया और गौरी शंकर मंदिर का निर्माण किया जिसका
प्रमाण मंदिर के बाहर उनके नाम का लगा हुआ शिलालेख है। बाजीराव पेशवा
ने एक शक्तिशाली हिन्दुराष्ट्र की स्थापन की जो 1830 तक अंग्रेजो के
आने तक स्थापित रहा। मुगल सुल्तान मराठाओ को चौथ व् कर देते रहे और
केवल लालकिले तक सिमित रह गए। और वे तब तक शक्तिहीन रहे जब तक
अंग्रेज भारत में नहीं आ गए।
1760 के बाद भारत में मुस्लिम जनसँख्या में जबरदस्त गिरावट हुई जो
1800 तक मात्र 7 प्रतिशत तक पहुँच गयी थी। अंग्रेजो के आने के बाद
मुसल्मानो को संजीवनी मिली और पुन इस्लाम को खड़ा किया गया ताकि
भारत में सनातन धर्म को नष्ट किया जा सके इसलिए अंग्रेजो ने 50 साल से
अधिक समय से पहले ही मुसलमानो के सहारे भारत विभाजन का षड्यंत्र रच
लिया था। मुसलमानो के हिन्दुविरोधी रवैये व् उनके धार्मिक जूनून को
अंग्रेजो ने सही से प्रयोग किया।
असल में पूरी दुनिया में मुस्लिम कौम सबसे मुर्ख कौम है जिसे कभी ईसाइयो
ने कभी यहूदियो ने कभी अंग्रेजो ने अपने लाभ के लिए प्रयोग किया। आज
उन्ही मुसलमानो को पाकिस्तान में हमारी एजेंसीज अपने लाभ के लियर
प्रयोग करती है जिस पर अधिक जानने के लिए अगली पोस्ट की प्रतीक्षा
करे। ये झूठ इतिहास क्यों पढ़ाया गया।
असल में हिन्दुओ पर 1200 सालो के निरंतर आक्रमण के बाद भी जब भारत
पर इस्लामिक शासन स्थापित नहीं हुआ और न ही अंग्रेज इस देश को पूरा
समाप्त करे तो उन्होंने शिक्षा को अपना अस्त्र बनाया और इतिहास में
फेरबदल किये। अब हिन्दुओ की मानसिकता को बसलन है तो उन्हें ये बताना
होगा की तुम गुलाम हो। लगातार जब यही भाव हिन्दुओ में होगा तो वे स्वयं
को कमजोर और अत्याचारी को शक्तिशाली समझेंगे। अत: भारत के हिन्दुओ
को मानसिक गुलाम बनाया गया जिसके लिए झूठे इतिहास का सहारा लिया
गया और परिणाम सामने है। लुटेरे और चोरो को आज हम बादशाह सुलतान
नामो से पुकारते है उनके नाम पर सड़के बनाते है शहरो के नाम रखते है और
उसका कोई हिन्दू विरोध भी नहीं करता जो बिना गुलाम मानसिकता के संभव
नहीं सकता था इसलिए इतिहास बदलो मन बदलो
और गुलाम बनाओ यही आज तक होता आया है जिसे हमने मित्र माना वही
अंत में हमारी पीठ पर वार करता है। इसलिए झूठे इतिहास और झुठर मित्र
दोनों से सावधान रहने की आवश्यकता है।
शेयर अवश्य करे।
क्या पता आप अपने किसी मित्र के मन से ये गुलामी का भाव निकाल दे की
हम कभी किसी के दास नहीं बल्कि शक्तिशाली थे जिन्होंने 1200 सालो तक
विदेशी मुस्लिम लुटेरो और अंग्रेजो का सामना किया और आज भी जीवित
बचे हुए है।                          

 🔫: प्रताप-महान" (महाराणा प्रताप) के एक वार से बहलोल खां के सिर से घोड़े
तक हो गए थे दो टुकड़े''
....
अकबर और महाराणा प्रताप के बीच हुए
हल्दीघाटी के युद्ध को महासंग्राम कहा गया।
वजह ये कि 5 घंटे की लड़ाई में जो घटनाएं हुईं, अद्भुत
थीं। इस युद्ध में महाराणा के एक वार से मुगल सैनिक और उसके
घोड़े के दो टुकड़े हो गए थे। अबुल फजल ने कहा कि यहां जान
सस्ती और इज्जत महंगी थी।
इसी लड़ाई से मुगलों का अजेय होने का भ्रम टूटा था। मेवाड़ सेना में
20000 और मुगल सेना में 85000 सैनिक थे। फौजों से मरे 60000 सैनिक। परिणाम
भी ऐसा कि कोई हारा, जीता। इतिहासकार कर्नल
जेम्स टॉड ने इसे थर्मोपॉली (यूनान में हुआ युद्ध) कहा है।
18 जून का दिन। मुगल सेना मेवाड़ की राजधानी गोगुंदा
पर कब्जा करने निकली। मानसिंह के नेतृत्व में मुगल सेना ने मोलेला
में पड़ाव डाला था। इसे रोकने के मकसद से निकले प्रताप ने लोसिंग में पड़ाव डाला।
मोलेला से गोगुंदा जाने को निकली मुगल सेना तीन हिस्सों
में बंट गई। एक हिस्सा सीधे गोगुंदा की ओर मुड़ा,
दूसरा हल्दीघाटी होकर और तीसरा
उनवास की ओर। खून इतना बहा कि जंग के मैदान को रक्त तलाई
कहा हल्दीघाटी में दोनों सेनाएं सामने हो गईं। घबराए
मुगल सैनिक भागने लगे। मेवाड़ी सेना ने पीछा किया।
खमनोर में दोनों फौजों की सभी टुकड़ियां आमने-सामने
हो गईं। इतना खून बहा कि जंग के मैदान को रक्त तलाई कहा गया।
'' प्रताप के एक वार से बहलोल खां के सिर से घोड़े तक हो गए थे दो टुकड़े''
बदायूनी लिखते हैं कि देह जला देने वाली धूप और लू
सैनिकों के मगज पिघला देने वाली थी। चारण रामा सांदू ने
आंखों देखा हाल लिखा है कि प्रताप ने मानसिंह पर वार किया। वह झुककर
बच गया, महावत मारा गया। बेकाबू हाथी को मानसिंह ने संभाल
लिया। सबको भ्रम हुआ कि मानसिंह मर गया। दूसरे ही पल
बहलोल खां पर प्रताप ने ऐसा वार किया कि सिर से घोड़े तक के दो टुकड़े कर दिए।
युद्ध में प्रताप को बंदूक की गोली सहित आठ बड़े
घाव लगे थे। तीर-तलवार की अनगिनत घाव
थीं। चेतक के घायल होने के बाद निकले प्रताप के घावों को कालोड़ा में
मरहम मिला। ग्वालियर के राजा राम सिंह तंवर प्रताप की बहन
के ससुर थे। उन्होंने तीन बेटों और एक पोते सहित बलिदान दिया।
इस पर बदायूनी लिखते हैं कि ऐसे वीर
की ख्याति लिखते मेरी कलम भी रुक
जाती है। युद्ध के बाद मुगल सेना ने कैंप में लौटकर देखा कि रसद
सामग्री भील लूट चुके थे। अगले ही
दिन गोगुंदा पर कब्जा कर लिया, लेकिन कुछ नहीं मिला तो फल खाकर
समय निकाला। आखिर गोगुंदा छोड़कर लौटना पड़ा। खाली हाथ लौटे
मानसिंह पर अकबर इतना नाराज हुआ कि सात दिन तक उसे ड्योढ़ी
में नहीं आने दिया।
--
मान सिंह जैसे गद्दारों की बजह से ही भारत में
मुस्लिम शासन चला नहीं तो हम भारतीय इतने
बहादुर थे की विश्वविजेता अलेक्जेंडर ( सिकंदरयूनान) जैसे ने
हार मान कर वापस चले गए थे ! मान सिंह जैसे गद्दारो पर थूकता हूँ !

Thursday, 21 May 2015

शाकाहारी बनो...! ।।.शाकाहार-अभियान

गर्व था भारत-भूमि को
कि महावीर की माता हूँ।।

राम-कृष्ण और नानक जैसे
वीरो की यशगाथा हूँ॥

कंद-मूल खाने वालों से
मांसाहारी डरते थे।।

पोरस जैसे शूर-वीर को
नमन 'सिकंदर' करते थे॥

चौदह वर्षों तक वन में
जिसका धाम था।।

मन-मन्दिर में बसने
वाला शाकाहारी राम था।।

चाहते तो खा सकते थे
वो मांस पशु के ढेरो में।।

लेकिन उनको प्यार मिला
' शबरी' के झूठे बेरो में॥

चक्र सुदर्शन धारी थे
गोवर्धन पर भारी थे॥

मुरली से वश करने वाले
'गिरधर' शाकाहारी थे॥

पर-सेवा, पर-प्रेम का परचम
चोटी पर फहराया था।।

निर्धन की कुटिया में जाकर जिसने मान बढाया था॥

सपने जिसने देखे थे
मानवता के विस्तार के।।

नानक जैसे महा-संत थे
वाचक शाकाहार के॥

उठो जरा तुम पढ़ कर
देखो गौरवमयी इतिहास को।।

आदम से गाँधी तक फैले
इस नीले आकाश को॥

दया की आँखे खोल देख लो
पशु के करुण क्रंदन को।।

इंसानों का जिस्म बना है
शाकाहारी भोजन को॥

अंग लाश के खा जाए
क्या फ़िर भी वो इंसान है?

पेट तुम्हारा मुर्दाघर है
या कोई कब्रिस्तान है?

आँखे कितना रोती हैं
जब उंगली अपनी जलती है।।

सोचो उस तड़पन की हद
जब जिस्म पे आरी चलती है॥

बेबसता तुम पशु की देखो
बचने के आसार नही।।

जीते जी तन काटा जाए,
उस पीडा का पार नही॥

खाने से पहले बिरयानी,
चीख जीव की सुन लेते।।

करुणा के वश होकर तुम भी
गिरी गिरनार को चुन लेते॥

शाकाहारी बनो...!
।।.शाकाहार-अभियान.।।

nice line कृष्ण जी कहते हैं- "तुम पाँचों भाई वन में जाओ जो कुछ भी दिखे वह आकर मुझे बताओ। मैं तुम्हें उसका प्रभाव बताऊँगा।

Jaroor padhe🌟कृष्ण कहते हैं- "तुम पाँचों भाई वन में जाओ और जो कुछ भी दिखे वह आकर मुझे बताओ। मैं तुम्हें उसका प्रभाव बताऊँगा।"
🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟
पाँचों भाई वन में गये।

☀युधिष्ठिर महाराज ने
देखा कि किसी हाथी की दो सूँड है।

यह देखकर आश्चर्य का पार न रहा।
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☀अर्जुन दूसरी दिशा में गये। वहाँ उन्होंने देखा कि कोई पक्षी है, उसके पंखों पर वेद की ऋचाएँ लिखी हुई हैं पर वह पक्षी मुर्दे का मांस खा रहा है

यह भी आश्चर्य है !
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☀भीम ने तीसरा आश्चर्य देखा कि गाय ने बछड़े को जन्म दिया है और बछड़े को इतना चाट रही है कि बछड़ा लहुलुहान हो जाता है।
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☀सहदेव ने चौथा आश्चर्य देखा कि छः सात कुएँ हैं और आसपास के कुओं में पानी है किन्तु बीच का कुआँ खाली है। बीच का कुआँ गहरा है फिर भी पानी नहीं है।
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☀पाँचवे भाई नकुल ने भी एक अदभुत आश्चर्य देखा कि एक पहाड़ के ऊपर से एक बड़ी शिला लुढ़कती-लुढ़कती आती और कितने ही वृक्षों से टकराई पर उन वृक्षों के तने उसे रोक न सके। कितनी ही अन्य शिलाओं के साथ टकराई पर वह रुक न सकीं। अंत में एक अत्यंत छोटे पौधे का स्पर्श होते ही वह स्थिर हो गई।
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☀पाँचों भाईयों के आश्चर्यों का कोई पार नहीं ! शाम को वे श्रीकृष्ण के पास गये और अपने अलग-अलग दृश्यों का वर्णन किया।

☀युधिष्ठिर कहते हैं- "मैंने
दो सूँडवाला हाथी देखा तो मेरे आश्चर्य का कोई पार न
रहा।"

🌹तब श्री कृष्ण कहते हैं- "कलियुग में ऐसे लोगों का राज्य होगा जो दोनों ओर से शोषण करेंगे। बोलेंगे कुछ और करेंगे कुछ। ऐसे लोगों का राज्य होगा। इससे तुम पहले राज्य कर लो।
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☀अर्जुन ने आश्चर्य देखा कि पक्षी के पंखों पर वेद की ऋचाएँ लिखी हुई हैं और
पक्षी मुर्दे का मांस खा रहा है।

🌹इसी प्रकार कलियुग में ऐसे लोग रहेंगे जो बड़े-बड़े पंडित और विद्वान कहलायेंगे किन्तु वे यही देखते रहेंगे कि कौन-सा मनुष्य मरे और हमारे नाम से संपत्ति कर जाये।

"संस्था" के व्यक्ति विचारेंगे कि कौन सा मनुष्य मरे और
संस्था हमारे नाम से हो जाये।

हर जाति धर्म के प्रमुख पद पर बैठे विचार करेंगे कि कब किसका श्राद्ध है ?

चाहे कितने भी बड़े लोग होंगे किन्तु उनकी दृष्टि तो धन के ऊपर (मांस के ऊपर) ही रहेगी।

परधन परमन हरन .... बड़ी चतुर।

ऐसे लोगों की बहुतायत होगी, कोई कोई विरला ही संत पुरूष होगा।
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☀भीम ने तीसरा आश्चर्य देखा कि गाय अपने बछड़े को इतना चाटती है कि बछड़ा लहुलुहान हो जाता है।

🌹कलियुग का आदमी शिशुपाल हो जायेगा।

बालकों के लिए इतनी ममता करेगा कि उन्हें अपने
विकास का अवसर ही नहीं मिलेगा।

""किसी का बेटा घर छोड़कर साधु बनेगा तो हजारों व्यक्ति दर्शन करेंगे....

किन्तु यदि अपना बेटा साधु बनता होगा तो रोयेंगे कि मेरे बेटे का क्या होगा ?""

इतनी सारी ममता होगी कि उसे मोह माया और परिवार में ही बाँधकर रखेंगे और उसका जीवन वहीं खत्म हो जाएगा। अंत में बिचारा अनाथ होकर मरेगा। वास्तव में लड़के तुम्हारे नहीं हैं, वे तो बहुओं की अमानत हैं, लड़कियाँ जमाइयों की अमानत हैं और तुम्हारा यह शरीर मृत्यु की अमानत है।

तुम्हारी आत्मा-परमात्मा की अमानत है ।

तुम अपने शाश्वत संबंध को जान लो बस !
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☀सहदेव ने चौथा आश्चर्य यह देखा कि पाँच सात भरे कुएँ के बीच का कुआँ एक दम खाली !

🌹कलियुग में धनाढय लोग लड़के-लड़की के विवाह में,
मकान के उत्सव में, छोटे-बड़े उत्सवों में तो लाखों रूपये खर्च कर देंगे परन्तु पड़ोस में ही यदि कोई भूखा प्यासा होगा तो यह नहीं देखेंगे कि उसका पेट भरा है या नहीं।

दूसरी और मौज-मौज में, शराब, कबाब, फैशन और
व्यसन में पैसे उड़ा देंगे।

किन्तु किसी के दो आँसूँ पोंछने में उनकी रूचि न होगी और जिनकी रूचि होगी उन पर कलियुग का प्रभाव नहीं होगा, उन पर भगवान का प्रभाव होगा।
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
☀पाँचवा आश्चर्य यह था कि एक बड़ी चट्टान पहाड़
पर से लुढ़की, वृक्षों के तने और चट्टाने उसे रोक न पाये किन्तु एक छोटे से पौधे से टकराते ही वह चट्टान रूक गई।

🌹कलियुग में मानव का मन नीचे गिरेगा, उसका जीवन पतित होगा।

यह पतित जीवन धन की शिलाओं से नहीं रूकेगा न ही सत्ता के वृक्षों से रूकेगा।

किन्तु हरिनाम के एक छोटे से पौधे से, हरि कीर्तन के एक छोटे से पौधे मनुष्य जीवन का पतन होना रूक जायेगा ।
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Thursday, 14 May 2015

मैं कहता हूँ जला डालो ऐसी किताबो को जहा ये लिखा है की अकबर महान था, फाड़ दो उन पृष्ठों को जो कहते है की बाबर बहुत शक्तिशाली था,

ऐसी पोस्ट जो आपके अंदर की हीनभावना खत्म कर
देगी और आपमें नयी चेतना डाल देगी :-
आज के बाद कभी मत कहना की हिन्दू कायर थे |सच्चे
इतिहास से परिचित होने के लिए दी हुई पोस्ट पूरा पढो |
वीरों - महावीरो को इतिहास के पन्नो में सिमटने नहीं देंगे
हम...पहचानिए अपने गौरव को ...
||सत्य ना कभी झुका हैं ना कभी झुकेगा ||
झूठे इतिहास को पढ़ाकर हिन्दुओं को नपुंसक बनाने
का षड्यंत्र :-
हम लोगों को जो झुठा इतिहास पढाया जाता हैं इसलिए
की ताकि हमे गुलामी की आदत पड़ जाय | ये ही पढ़ते हैं
हम हमेशा की मुगलों ने 400 साल राज किया,
गौरी गजनवी आये, और हमारे मंदिर लूट कर चले गये,
तुर्क अफगान आये, और हम पर सैंकड़ो सालो तक राज
करके चले गए, आदि आदि हमको डराने वाली बातें जिससे
हमारे अंदर हीन भावना आ जाये ||
कब तक नेहरु गाँधी का झूठा इतिहास पढ़ते रहोगे, कब तक
ये कहते रहोगे, की मुसलमानों ने हम पर 800 साल राज
किया |
________________
अरे मैं कहता हूँ
जला डालो ऐसी किताबो को जहा ये लिखा है की अकबर
महान था,
फाड़ दो उन पृष्ठों को जो कहते है की बाबर बहुत
शक्तिशाली था,
फेंक दो उन दस्तावेजो को जो कहते है की औरंगजेब ने
लाखो कश्मीरी पंडितो के जनेऊ उतरवाए पर किसी हिन्दू ने
प्रतिकार नहीं किया |
1.) अफगानिस्तान के अटक से लेकर कटक तक और
दक्षिण से दिल्ली तक मुस्लीम सत्ता को हिंदू वीरो ने
महावीरो ने परास्त कर चूर चूर कर दिया | ये इतिहास
गांधी-नेहरू जैसे असुर तुमको कभी नही बतायेंगे...
2.) अफगानिस्तान पर आक्रमण करके मराठा सेना ने
45000/ पठानो को काट फेका और 800 वर्षो बाद
गांधार पर भगवा झंडा लहराया |
3.) सोमनाथ मंदिर तोड़ने वाला भी कुत्ते की तरह टुकड़े
टुकड़े कर के चील गिद्धों को खिला दिया गया इसी देश मैं
यह कोई नहीं बताएगा|
4.) शिवाजी महाराज के सेनापति हम्बिराव ने 3 घंटे मैं
600 मुल्लो को काट डाला था यह कोई नहीं बताएगा |
5.) दिल्ली का गौरी शंकर मंदिर आज भी उस वीर हिदू
गाथा का गवाह है जब वीर हिन्दू नायक बाजी राव
पेशवा प्रथम ने मुगलों की ईंट से ईंट बजा कर दिल्ली पर
भगवा झंडा फहराया था और 800 वर्ष पुराने गौरी शंकर
मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था|
राजस्थान की शौर्य गाथा
शूरवीर हिंदूओ के महान सत्य
1. चित्तौड़ के जयमाल मेड़तिया ने एक
ही झटके में हाथी का सिर काट डाला था ।
2. करौली के जादोन राजा अपने सिंहासन पर
बैठते वक़्त अपने दोनो हाथ जिन्दा शेरों पर रखते
थे ।
3. जोधपुर के जसवंत सिंह के 12 साल के
पुत्र पृथ्वी सिंह ने हाथोँसे औरंगजेब के खूंखार
भूखे जंगली शेर का जबड़ा फाड़ डाला था ।
4. राणा सांगा के शरीर पर युद्धोंके छोटे-
बड़े 80 घाव थे। युद्धों में घायल होने के कारण

-
उनके एक हाथ नहीं था, एक पैर नही था, एक
आँख नहीं थी। उन्होंने अपने जीवन-काल में 100
से भी अधिक युद्ध लड़े थे ।
5. एक राजपूत वीर जुंझार जो मुगलों से
लड़ते वक्त शीश कटने के बाद भी घंटे तक लड़ते
रहे आज उनका सिर बाड़मेर में है,
जहाँ छोटा मंदिर हैं और धड़ पाकिस्तान में है।
6. रायमलोत कल्ला का धड़, शीश कटने के
बाद लड़ता-लड़ता घोड़े पर पत्नी रानी के पास
पहुंच गया था तब रानी ने गंगाजल के छींटे डाले
तब धड़ शांत हुआ।
7. चित्तौड़ में अकबर से हुए युद्ध में
जयमाल राठौड़ पैर जख्मी होने की वजह से
कल्ला जी के कंधे पर बैठ कर युद्ध लड़े थे। ये
देखकर सभी युद्ध-रत साथियों को चतुर्भुज
भगवान की याद आ गयी थी, जंग में दोनों के सर
काटने के बाद भी धड़ लड़ते रहे और
राजपूतों की फौज ने दुश्मन को मार गिराया। अंत
में अकबर ने उनकी वीरता से प्रभावित हो कर
जयमाल और कल्ला जी की मूर्तियाँ आगरा के
किले में लगवायी थी।
8. राजस्थान पाली में आउवा के ठाकुर
खुशाल सिंह 1877 में अजमेर जा कर अंग्रेज
अफसर का सर काट कर ले आये थे और
उसका सर अपने किले के बाहर लटकाया था, तब
से आज दिन तक उनकी याद में मेला लगता है।
9. महाराणा प्रताप के भाले का वजन
सवा मन (लगभग 50 किलो ) था, कवच
का वजन 80 किलो था। कवच, भाला, ढाल और
हाथ में तलवार का वजन मिलाये तो लगभग
200 किलो था। उन्होंने तलवार के एक ही वार
से बख्तावर खलजी को टोपे, कवच, घोड़े सहितC
एक ही झटके में काट दिया था।
10. सलूम्बर के नवविवाहित रावत रतन
सिंह चुण्डावत जी ने युद्ध जाते समय मोह-वश
अपनी पत्नी हाड़ा रानी की कोई
निशानी मांगी तो रानी ने सोचा ठाकुर युद्ध में मेरे
मोह के कारण नही लड़ेंगे तब रानी ने निशानी के
तौर पर अपना सर काट के दे दिया था।
अपनी पत्नी का कटा शीश गले में लटका कर
मुग़ल सेना के साथ भयंकर युद्ध किया और
वीरता पूर्वक लड़ते हुए अपनी मातृ भूमि के लिए
शहीद हो गये थे।
11. हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से
20000 सैनिक थे और अकबर की ओर से
85000 सैनिक थे। फिर भी अकबर की मुगल
सेना पर राजपूत भारी पड़े थे।
ये वो हिन्दू सूरमे थे जिनके नाम मात्र से मुग़ल सेना काँप
जाती थी।
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saitan tha Akbar) महान नही शैतान था अकबर

.महान नही शैतान था अकबर : अकबर के समय के इतिहास लेखक अहमद यादगार ने लिखा-"बैरम खाँ ने निहत्थे और बुरी तरह घायल हिन्दू राजा हेमू के हाथ पैर बाँध दिये और उसे नौजवान शहजादे के पास ले गया और बोला, आप अपने पवित्र हाथों से इस काफिर का कत्ल कर दें और"गाज़ी"की उपाधि कुबूल करें, और शहजादे ने उसका सिर उसके अपवित्र धड़ से अलग कर दिया।'' (नवम्बर, ५ AD १५५६)(तारीख-ई-अफगान,अहमद यादगार,अनुवाद एलियट और डाउसन, खण्ड VI, पृष्ठ ६५-६६)इस तरह अकबर ने १४ साल की आयु में ही गाज़ी(काफिरों का कातिल) होने का सम्मान पाया।इसके बाद हेमू के कटे सिर को काबुल भिजवा दिया और धड़ को दिल्ली के दरवाजे पर टांग दिया।अबुल फजल ने आगे लिखा - ''हेमू के पिता को जीवित ले आया गया और नासिर-उल-मलिक के सामने पेशकिया गया जिसने उसे इस्लाम कबूल करने का आदेश दिया, किन्तु उस वृद्ध पुरुष ने उत्तर दिया, ''मैंने अस्सी वर्ष तक अपने ईश्वर की पूजा की है; मै अपने धर्म को कैसे त्याग सकता हूँ?मौलाना परी मोहम्मद ने उसके उत्तर को अनसुना कर अपनी तलवार से उसका सर काट दिया।''(अकबर नामा, अबुल फजल : एलियट और डाउसन, पृष्ठ २१)इस विजय के तुरन्त बाद अकबर ने काफिरों के कटे हुए सिरों से एक ऊँची मीनार बनवायी।२ सितम्बर १५७३ को भी अकबर ने अहमदाबाद में २००० दुश्मनों के सिर काटकर अब तक की सबसे ऊँचीसिरों की मीनार बनवायी और अपने दादा बाबर का रिकार्ड तोड़ दिया। (मेरे पिछले लेखों में पढ़िए) यानी घर का रिकार्ड घर में ही रहा।अकबरनामा के अनुसार ३ मार्च १५७५ को अकबर ने बंगाल विजय के दौरान इतने सैनिकों और नागरिकोंकी हत्या करवायी कि उससे कटे सिरों की आठ मीनारें बनायी गयीं। यह फिर से एक नया रिकार्ड था। जब वहाँ के हारे हुए शासक दाउद खान ने मरते समय पानी माँगा तो उसे जूतों में भरकर पानीपीने के लिए दिया गया।अकबर की चित्तौड़ विजय के विषय में अबुल फजल नेलिखा था- ''अकबर के आदेशानुसार प्रथम ८०००राजपूत योद्धाओं को बंदी बना लिया गया, और बाद में उनका वध कर दिया गया। उनके साथ-साथ विजयके बाद प्रात:काल से दोपहर तक अन्य ४०००० किसानों का भी वध कर दिया गया जिनमें ३००० बच्चे और बूढ़े थे।''(अकबरनामा, अबुल फजल, अनुवाद एच. बैबरिज)चित्तौड़ की पराजय के बाद महारानी जयमाल मेतावाड़िया समेत १२००० क्षत्राणियों ने मुगलों केहरम में जाने की अपेक्षा जौहर की अग्नि में स्वयं को जलाकर भस्म कर लिया। जरा कल्पना कीजिएविशाल गड्ढों में धधकती आग और दिल दहला देने वाली चीखों-पुकार के बीच उसमें कूदती १२००० महिलाएँ ।अपने हरम को सम्पन्न करने के लिए अकबर ने अनेकों हिन्दू राजकुमारियों के साथ जबरनठ शादियाँकी थी परन्तु कभी भी, किसी मुगल महिला को हिन्दू से शादी नहीं करने दी। केवल अकबर के शासनकाल में 38 राजपूत राजकुमारियाँ शाही खानदान में ब्याही जा चुकी थीं। १२ अकबर को, १७शाहजादा सलीम को, छः दानियाल को, २ मुराद को और १ सलीम के पुत्र खुसरो को।अकबर की गंदी नजर गौंडवाना की विधवा रानी दुर्गावती पर थी''सन् १५६४ में अकबर ने अपनी हवस की शांति के लिए रानी दुर्गावती पर आक्रमण कर दिया किन्तु एक वीरतापूर्ण संघर्ष के बाद अपनी हार निश्चित देखकर रानी ने अपनी ही छाती में छुरा घोंपकरआत्म हत्या कर ली। किन्तु उसकी बहिन और पुत्रवधू को को बन्दी बना लिया गया। और अकबर ने उसेअपने हरम में ले लिया। उस समय अकबर की उम्र २२ वर्ष और रानी दुर्गावती की ४० वर्ष थी।''(आर. सी. मजूमदार, दी मुगल ऐम्पायर, खण्ड VII)सन् 1561 में आमेर के राजा भारमल और उनके ३ राजकुमारों को यातना दे कर उनकी पुत्री कोसाम्बर से अपहरण कर अपने हरम में आने को मज़बूर किया।औरतों का झूठा सम्मान करने वाले अकबर ने सिर्फ अपनी हवस मिटाने के लिए न जाने कितनी मुस्लिम औरतों की भी अस्मत लूटी थी। इसमें मुस्लिम नारी चाँद बीबी का नाम भी है।अकबर ने अपनी सगी बेटी आराम बेगम की पूरी जिंदगी शादी नहीं की और अंत में उस की मौत अविवाहित ही जहाँगीर के शासन काल में हुई।सबसे मनगढ़ंत किस्सा कि अकबर ने दया करके सतीप्रथा पर रोक लगाई; जबकि इसके पीछे उसका मुख्यमकसद केवल यही था की राजवंशीय हिन्दू नारियों के पतियों को मरवाकर एवं उनको सती होने से रोककर अपने हरम में डालकर एेय्याशी करना।राजकुमार जयमल की हत्या के पश्चात अपनी अस्मत बचाने को घोड़े पर सवार होकर सती होने जा रहीउसकी पत्नी को अकबर ने रास्ते में ही पकड़ लिया।शमशान घाट जा रहे उसके सारे सम्बन्धियों को वहीं से कारागार में सड़ने के लिए भेज दिया और राजकुमारी को अपने हरम में ठूंस दिया ।इसी तरह पन्ना के राजकुमार को मारकर उसकी विधवा पत्नी का अपहरण कर अकबर ने अपने हरम में लेलिया।अकबर औरतों के लिबास में मीना बाज़ार जाता था जो हर नये साल की पहली शाम को लगता था। अकबर अपने दरबारियों को अपनी स्त्रियों को वहाँ सज-धज कर भेजने का आदेश देता था। मीना बाज़ार में जो औरत अकबर को पसंद आ जाती, उसके महान फौजी उस औरत को उठा ले जाते और कामी अकबर की अय्याशी के लिए हरम में पटक देते। अकबर महान उन्हें एक रात से लेकर एक महीने तक अपनी हरम में खिदमत का मौका देते थे। जब शाही दस्ते शहर से बाहर जाते थे तो अकबर के हरमकी औरतें जानवरों की तरह महल में बंद कर दी जाती थीं।अकबर ने अपनी अय्याशी के लिए इस्लाम का भी दुरुपयोग किया था। चूँकि सुन्नी फिरके के अनुसारएक मुस्लिम एक साथ चार से अधिक औरतें नहीं रख सकता और जब अकबर उस से अधिक औरतें रखने लगा तो काजी ने उसे रोकने की कोशिश की। इस से नाराज होकर अकबर ने उस सुन्नी काजी को हटा कर शिया काजी को रख लिया क्योंकि शिया फिरके में असीमित और अस्थायी शादियों की इजाजत है , ऐसीशादियों को अरबी में "मुतअ" कहा जाता है।अबुल फज़ल ने अकबर के हरम को इस तरह वर्णित किया है-“अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थीं और ये पांच हजार औरतें उसकी ३६ पत्नियों से अलग थीं।शहंशाह के महल के पास ही एक शराबखाना बनाया गया था। वहाँ इतनी वेश्याएं इकट्ठी हो गयीं कि उनकी गिनती करनी भी मुश्किल हो गयी। अगर कोई दरबारी किसी नयी लड़की को घर ले जाना चाहे तो उसको अकबर से आज्ञा लेनी पड़ती थी। कई बार सुन्दर लड़कियों को ले जाने के लिए लोगों में झगड़ा भी हो जाता था। एक बार अकबर ने खुद कुछ वेश्याओं को बुलाया और उनसे पूछा कि उनसे सबसे पहले भोग किसने किया”।बैरम खान जो अकबर के पिता जैसा और संरक्षक था,उसकी हत्या करके इसने उसकी पत्नी अर्थात अपनी माता के समान स्त्री से शादी की ।इस्लामिक शरीयत के अनुसार किसी भी मुस्लिम राज्य में रहने वाले गैर मुस्लिमों को अपनी संपत्ति और स्त्रियों को छिनने से बचाने के लिए इसकी कीमत देनी पड़ती थी जिसे जजिया कहते थे। कुछ अकबर प्रेमी कहते हैं कि अकबर ने जजिया खत्म कर दिया था। लेकिन इस बात का इतिहास में एक जगह भी उल्लेख नहीं! केवल इतना है कि यह जजिया रणथम्भौर के लिए माफ करने की शर्त रखी गयी थी।रणथम्भौर की सन्धि में बूंदी के सरदार को शाही हरम में औरतें भेजने की "रीति" से मुक्ति देने की बात लिखी गई थी। जिससे बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है कि अकबर ने युद्ध में हारे हुए हिन्दू सरदारों के परिवार की सर्वाधिक सुन्दर महिला को मांग लेने की एक परिपाटी बना रखी थीं और केवल बूंदी ही इस क्रूर रीति से बच पाया था।यही कारण था की इन मुस्लिम सुल्तानों के काल में हिन्दू स्त्रियों के जौहर की आग में जलने की हजारों घटनाएँ हुईं ।जवाहर लाल नेहरु ने अपनी पुस्तक ''डिस्कवरी ऑफ इण्डिया'' में अकबर को 'महान' कहकर उसकी प्रशंसा की है। हमारे कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने भी अकबर को एक परोपकारी उदार, दयालु और धर्मनिरपेक्ष शासक बताया है।अकबर के दादा बाबर का वंश तैमूरलंग से था और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। इस प्रकारअकबर की नसों में एशिया की दो प्रसिद्ध आतंकी और खूनी जातियों, तुर्क और मंगोल के रक्त का सम्मिश्रण था। जिसके खानदान के सारे पूर्वज दुनिया के सबसे बड़े जल्लाद थे और अकबर के बाद भी जहाँगीर और औरंगजेब दुनिया के सबसे बड़े दरिन्दे थे तो ये बीच मेंमहानता की पैदाईश कैसे हो गयी।अकबर के जीवन पर शोध करने वाले इतिहासकार विंसेट स्मिथ ने साफ़ लिखा है की अकबर एक दुष्कर्मी, घृणित एवं नृशंश हत्याकांड करने वाला क्रूर शाशक था।विन्सेंट स्मिथ ने किताब ही यहाँ से शुरू की है कि “अकबर भारत में एक विदेशी था. उसकी नसोंमें एक बूँद खून भी भारतीय नहीं था । अकबर मुग़ल से ज्यादा एक तुर्क था”।चित्तौड़ की विजय के बाद अकबर ने कुछ फतहनामें प्रसारित करवाये थे। जिससे हिन्दुओं के प्रति उसकी गहन आन्तरिक घृणा प्रकाशित हो गई थी।उनमें से एक फतहनामा पढ़िये-''अल्लाह की खयाति बढ़े इसके लिए हमारे कर्तव्य परायण मुजाहिदीनों ने अपवित्र काफिरों को अपनी बिजली की तरह चमकीली कड़कड़ाती तलवारों द्वारा वध कर दिया। ''हमने अपना बहुमूल्य समय और अपनी शक्ति घिज़ा (जिहाद) में ही लगा दिया है और अल्लाह के सहयोग से काफिरों के अधीन बस्तियों, किलों, शहरों को विजय कर अपने अधीन कर लिया है, कृपालु अल्लाह उन्हें त्याग देऔर उन सभी का विनाश कर दे। हमने पूजा स्थलों उसकी मूर्तियों को और काफिरों के अन्य स्थानोंका विध्वंस कर दिया है।"(फतहनामा-ई-चित्तौड़ मार्च १५८६,नई दिल्ली)महाराणा प्रताप के विरुद्ध अकबर के अभियानों के लिएसबसे बड़ा प्रेरक तत्व था इस्लामी जिहाद की भावना जो उसके अन्दर कूट-कूटकर भरी हुई थी।अकबर के एक दरबारी इमाम अब्दुल कादिर बदाउनी ने अपने इतिहास अभिलेख, 'मुन्तखाव-उत-तवारीख' में लिखा था कि १५७६ में जब शाही फौजें राणाप्रताप के खिलाफ युद्ध के लिए अग्रसर हो रहीं थीं तो मैनें (बदाउनीने) ''युद्ध अभियान में शामिल होकर हिन्दुओं के रक्त से अपनी इस्लामी दाढ़ी को भिगोंकर शाहंशाह से भेंट की अनुमति के लिए प्रार्थना की।''मेरे व्यक्तित्व और जिहाद के प्रति मेरी निष्ठा भावना से अकबर इतना प्रसन्न हुआ कि उन्होनें प्रसन्न होकर मुझेमुठ्ठी भर सोने की मुहरें दे डालीं।" (मुन्तखाब-उत-तवारीख : अब्दुल कादिर बदाउनी, खण्ड II, पृष्ठ ३८३,अनुवाद वी. स्मिथ, अकबर दी ग्रेट मुगल, पृष्ठ १०८)बदाउनी ने हल्दी घाटी के युद्ध में एक मनोरंजक घटना के बारे में लिखा था-''हल्दी घाटी में जब युद्ध चल रहा था और अकबर की सेना से जुड़े राजपूत, और राणा प्रताप की सेना के राजपूत जब परस्पर युद्धरत थे और उनमें कौन किस ओर है, भेद कर पाना असम्भव हो रहा था, तब मैनें शाही फौज के अपने सेना नायक से पूछा कि वह किस पर गोली चलाये ताकि शत्रु ही मरे।तब कमाण्डर आसफ खाँ ने उत्तर दिया कि यह जरूरी नहीं कि गोली किसको लगती है क्योंकि दोनों ओर से युद्ध करने वाले काफिर हैं, गोली जिसे भी लगेगी काफिर ही मरेगा, जिससे लाभ इस्लाम कोही होगा।''(मुन्तखान-उत-तवारीख : अब्दुल कादिर बदाउनी,खण्ड II,अनु अकबर दी ग्रेट मुगल : वी. स्मिथ पुनः मुद्रित १९६२; हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ दीइण्डियन पीपुल, दी मुगल ऐम्पायर :आर. सी. मजूमदार, खण्ड VII, पृष्ठ १३२ तृतीय संस्करण)जहाँगीर ने, अपनी जीवनी, ''तारीख-ई-सलीमशाही'' में लिखा था कि ' 'अकबर और जहाँगीर के शासन काल में पाँच से छः लाख की संख्या में हिन्दुओं का वध हुआ था।''(तारीख-ई-सलीम शाही, अनु. प्राइस, पृष्ठ २२५-२६)जून 1561- एटा जिले के (सकित परंगना) के 8 गावों की हिंदू जनता के विरुद्ध अकबर ने खुद एक आक्रमण का संचालन किया और परोख नाम के गाँव में मकानों में बंद करके १००० से ज़्यादा हिंदुओं को जिंदा जलवा दिया था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार उनके इस्लाम कबूल ना करने के कारण ही अकबर ने क्रुद्ध होकर ऐसा किया।थानेश्वर में दो संप्रदायों कुरु और पुरी के बीच पूजा की जगह को लेकर विवाद चल रहा था. अकबर ने आदेशदिया कि दोनों आपस में लड़ें और जीतने वाला जगह पर कब्ज़ा कर ले। उन मूर्ख लोगों ने आपस में ही अस्त्र शस्त्रों से लड़ाई शुरू कर दी। जब पुरी पक्ष जीतने लगा तो अकबर ने अपने सैनिकों को कुरु पक्ष की तरफ से लड़ने का आदेश दिया. और अंत में इसने दोनों ही तरफ के लोगों को अपने सैनिकों से मरवा डाला और फिर अकबर महान जोर से हंसा।एक बार अकबर शाम के समय जल्दी सोकर उठ गया तो उसने देखा कि एक नौकर उसके बिस्तर के पास सो रहा है। इससे उसको इतना गुस्सा आया कि नौकर को मीनार से नीचे फिंकवा दिया। अगस्त १६०० में अकबर की सेना ने असीरगढ़ का किला घेर लिया पर मामला बराबरी का था।विन्सेंट स्मिथ ने लिखा है कि अकबर ने एक अद्भुत तरीका सोचा। उसने किले के राजा मीरां बहादुर को संदेश भेजकर अपने सिर की कसम खाई कि उसे सुरक्षित वापस जाने देगा। जब मीरां शान्ति के नाम पर बाहर आया तो उसे अकबर के सामने सम्मान दिखाने के लिए तीन बार झुकने का आदेश दिया गया क्योंकि अकबर महानको यही पसंद था।उसको अब पकड़ लिया गया और आज्ञा दी गयी कि अपने सेनापति को कहकर आत्मसमर्पण करवा दे। मीराँके सेनापति ने इसे मानने से मना कर दिया और अपने लड़के को अकबर के पास यह पूछने भेजा कि उसने अपनी प्रतिज्ञा क्यों तोड़ी? अकबर ने उसके बच्चे से पूछा कि क्या तेरा पिता आत्मसमर्पण के लिए तैयार है? तब बालक ने कहा कि चाहे राजा को मार ही क्यों न डाला जाए उसका पिता समर्पण नहीं करेगा। यह सुनकर अकबर महान ने उस बालक को मार डालने का आदेश दिया। यह घटना अकबर की मृत्यु से पांच साल पहले की ही है।हिन्दुस्तानी मुसलमानों को यह कह कर बेवकूफ बनाया जाता है कि अकबर ने इस्लाम की अच्छाइयों को पेश किया. असलियत यह है कि कुरआन के खिलाफ जाकर ३६ शादियाँ करना, शराब पीना, नशा करना, दूसरों से अपने आगे सजदा करवाना आदि इस्लाम के लिए हराम है और इसीलिए इसके नाम की मस्जिद भी हराम है।अकबर स्वयं पैगम्बर बनना चाहता था इसलिए उसने अपना नया धर्म "दीन-ए-इलाही - ﺩﯾﻦ ﺍﻟﻬﯽ "चलाया। जिसका एकमात्र उद्देश्य खुद की बड़ाई करवाना था। यहाँ तक कि मुसलमानों के कलमें मेंयह शब्द "अकबर खलीफतुल्लाह - ﺍﻛﺒﺮ ﺧﻠﻴﻔﺔ ﺍﻟﻠﻪ " भी जुड़वा दिया था।उसने लोगों को आदेश दिए कि आपस में अस्सलाम वालैकुम नहीं बल्कि “अल्लाह ओ अकबर” कहकर एक दूसरे का अभिवादन किया जाए। यही नहीं अकबर ने हिन्दुओं को गुमराह करने के लिए एक फर्जी उपनिषद् "अल्लोपनिषद" बनवाया था जिसमें अरबी और संस्कृत मिश्रित भाषा में मुहम्मद को अल्लाह का रसूल और अकबर को खलीफा बताया गया था। इस फर्जी उपनिषद् का उल्लेख महर्षि दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश में किया है।उसके चाटुकारों ने इस धूर्तता को भी उसकी उदारता की तरह पेश किया। जबकि वास्तविकता ये है कि उस धर्म को मानने वाले अकबरनामा में लिखित कुल १८ लोगों में से केवल एक हिन्दू बीरबल था।अकबर ने अपने को रूहानी ताकतों से भरपूर साबित करने के लिए कितने ही झूठ बोले। जैसे कि उसके पैरों की धुलाई करने से निकले गंदे पानी में अद्भुत ताकत है जो रोगों का इलाज कर सकताहै। अकबर के पैरों का पानी लेने के लिए लोगों की भीड़ लगवाई जाती थी। उसके दरबारियों को तोइसलिए अकबर के नापाक पैर का चरणामृत पीना पड़ता था ताकि वह नाराज न हो जाए।अकबर ने एक आदमी को केवल इसी काम पर रखा था कि वह उनको जहर दे सके जो लोग उसे पसंद नहीं।अकबर महान ने न केवल कम भरोसेमंद लोगों का कतलकराया बल्कि उनका भी कराया जो उसके भरोसे के आदमी थे जैसे- बैरम खान (अकबर का गुरु जिसे मारकर अकबर ने उसकी बीवी से निकाह कर लिया), जमन, असफ खान (इसका वित्त मंत्री), शाह मंसूर,मानसिंह, कामरान का बेटा, शेख अब्दुरनबी, मुइजुल मुल्क, हाजी इब्राहिम और बाकी सब जो इसे नापसंद थे। पूरी सूची स्मिथ की किताब में दी हुई है।अकबर के चाटुकारों ने राजा विक्रमादित्य के दरबार की कहानियों के आधार पर उसके दरबार और नौरत्नों की कहानी गढ़ी। पर असलियत यह है कि अकबर अपनेसब दरबारियों को मूर्ख समझता था। उसने स्वयं कहा था कि वह अल्लाह का शुक्रगुजार है कि उसकोयोग्य दरबारी नहीं मिले वरना लोग सोचते कि अकबर का राज उसके दरबारी चलाते हैं वह खुद नहीं।अकबरनामा के एक उल्लेख से स्पष्ट हो जाता है कि उसके हिन्दू दरबारियों का प्रायः अपमान हुआकरता था। ग्वालियर में जन्में संगीत सम्राट रामतनु पाण्डेय उर्फ तानसेन की तारीफ करते-करतेमुस्लिम दरबारी उसके मुँह में चबाया हुआ पान ठूँस देते थे। भगवन्त दास और दसवंत ने सम्भवत:इसी लिए आत्महत्या कर ली थी।प्रसिद्ध नवरत्न टोडरमल अकबर की लूट का हिसाब करता था। इसका काम था जजिया न देने वालों की औरतों को हरम का रास्ता दिखाना। वफादार होने के बावजूद अकबर ने एक दिन क्रुद्ध होकर उसकी पूजा की मूर्तियाँ तुड़वा दी।जिन्दगी भर अकबर की गुलामी करने के बाद टोडरमल ने अपने जीवन के आखिरी समय में अपनी गलती मान कर दरबार से इस्तीफा दे दिया और अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए प्राण त्यागने की इच्छा से वाराणसी होते हुए हरिद्वार चला गया और वहीं मरा।लेखक और नवरत्न अबुल फजल को स्मिथ ने अकबर का अव्वल दर्जे का निर्लज्ज चाटुकार बताया। बाद में जहाँगीर ने इसे मार डाला।फैजी नामक रत्न असल में एक साधारण सा कवि था जिसकी कलम अपने शहंशाह को प्रसन्न करने के लिएही चलती थी।बीरबल शर्मनाक तरीके से एक लड़ाई में मारा गया। बीरबल अकबर के किस्से असल में मन बहलाव की बातें हैं जिनका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं। ध्यान रहेकि ऐसी कहानियाँ दक्षिण भारत में तेनालीराम के नाम सेभी प्रचलित हैं।एक और रत्न शाह मंसूर दूसरे रत्न अबुल फजल के हाथों अकबर के आदेश पर मार डाला गया ।मान सिंह जो देश में पैदा हुआ सबसे नीच गद्दार था, ने अपनी बेटी तो अकबर को दी ही जागीर केलालच में कई और राजपूत राजकुमारियों को तुर्क हरम में पहुँचाया। बाद में जहांगीर ने इसी मान सिंह की पोती को भी अपने हरम में खींच लिया।मानसिंह ने पूरे राजपूताने के गौरव को कलंकित किया था। यहाँ तक कि उसे अपना आवास आगरा में बनाना पड़ा क्योंकि वो राजस्थान में मुँह दिखाने के लायक नहीं था। यही मानसिंह जब संत तुलसीदास से मिलने गया तो अकबर ने इस पर गद्दारी का संदेह कर दूध में जहर देकर मरवा डाला और इसके पिता भगवान दास ने लज्जित होकर आत्महत्या कर ली।इन नवरत्नों को अपनी बीवियां, लडकियां, बहनें तो अकबर की खिदमत में भेजनी पड़ती ही थीं ताकि बादशाह सलामत उनको भी सलामत रखें, और साथ ही अकबर महान के पैरों पर डाला गया पानी भी इनको पीना पड़ता था जैसा कि ऊपर बताया गया है। अकबर शराब और अफीम का इतना शौक़ीन था, कि अधिकतर समय नशे में धुत रहता था।अकबर के दो बच्चे नशाखोरी की आदत के चलते अल्लाह को प्यारे हो गये।हमारे फिल्मकार अकबर को सुन्दर और रोबीला दिखाने के लिए रितिक रोशन जैसे अभिनेताओं को फिल्मों में पेश करते हैं परन्तु विन्सेंट स्मिथ अकबर के बारे में लिखते हैं-“अकबर एक औसत दर्जे की लम्बाई का था। उसके बाएं पैर में लंगड़ापन था। उसका सिर अपने दायें कंधे की तरफ झुका रहता था। उसकी नाक छोटी थी जिसकी हड्डी बाहर को निकली हुई थी। उसके नाक के नथुने ऐसे दिखते थे जैसे वो गुस्से में हो। आधे मटर के दाने के बराबर एक मस्सा उसके होंठ और नथुनों को मिलाता था।अकबर का दरबारी लिखता है कि अकबर ने इतनी ज्यादा पीनी शुरू कर दी थी कि वह मेहमानों से बातकरता करता भी नींद में गिर पड़ता था। वह जब ज्यादा पी लेता था तो आपे से बाहर हो जाता था और पागलों जैसी हरकतें करने लगता।अकबर महान के खुद के पुत्र जहाँगीर ने लिखा है कि अकबर कुछ भी लिखना पढ़ना नहीं जानता था पर यह दिखाता था कि वह बड़ा भारी विद्वान है।अकबर ने एक ईसाई पुजारी को एक रूसी गुलाम का पूरा परिवार भेंट में दिया। इससे पता चलता है कि अकबर गुलाम रखता था और उन्हें वस्तु की तरह भेंट में दिया और लिया करता था।कंधार में एक बार अकबर ने बहुत से लोगों को गुलाम बनाया क्योंकि उन्होंने १५८१-८२ में इसकीकिसी नीति का विरोध किया था। बाद में इन गुलामों को मंडी में बेच कर घोड़े खरीदे गए ।अकबर बहुत नए तरीकों से गुलाम बनाता था। उसके आदमी किसी भी घोड़े के सिर पर एक फूल रख देतेथे। फिर बादशाह की आज्ञा से उस घोड़े के मालिक के सामने दो विकल्प रखे जाते थे, या तो वह अपने घोड़े को भूल जाये, या अकबर की वित्तीय गुलामी क़ुबूल करे।जब अकबर मरा था तो उसके पास दो करोड़ से ज्यादा अशर्फियाँ केवल आगरे के किले में थीं। इसी तरह के औरखजाने छह और जगह पर भी थे। इसके बावजूद भी उसने १५९५-१५९९ की भयानक भुखमरी के समय एक सिक्का भी देश की सहायता में खर्च नहीं किया।अकबर के सभी धर्म के सम्मान करने का सबसे बड़ा सबूत-अकबर ने गंगा,यमुना,सरस्वती के संगम का तीर्थनगर "प्रयागराज" जो एक काफिर नाम था को बदलकरइलाहाबाद रख दिया था। वहाँ गंगा के तटों पर रहने वाली सारी आबादी का क़त्ल करवा दिया और सबइमारतें गिरा दीं क्योंकि जब उसने इस शहर को जीता तो वहाँ की हिन्दू जनता ने उसका इस्तकबालनहीं किया। यही कारण है कि प्रयागराज के तटों पर कोई पुरानी इमारत नहीं है। अकबर ने हिन्दूराजाओं द्वारा निर्मित संगम प्रयाग के किनारे के सारे घाट तुड़वा डाले थे। आज भी वो सारे साक्ष्य वहाँ मौजूद हैं।२८ फरवरी १५८० को गोवा से एक पुर्तगाली मिशन अकबर के पास पंहुचा और उसे बाइबल भेंट की जिसेइसने बिना खोले ही वापस कर दिया।4 अगस्त १५८२ को इस्लाम को अस्वीकार करने के कारण सूरत के २ ईसाई युवकों को अकबर ने अपने हाथों से क़त्ल किया था जबकि इसाईयों ने इन दोनों युवकों को छोड़ने के लिए १००० सोने के सिक्कों का सौदा किया था। लेकिन उसने क़त्ल ज्यादा सही समझा । सन् 1582 में बीस मासूमबच्चों पर भाषा परीक्षण किया और ऐसे घर में रखा जहाँ किसी भी प्रकार की आवाज़ न जाए और उन मासूम बच्चों की ज़िंदगी बर्बाद कर दी वो गूंगे होकर मर गये । यही परीक्षण दोबारा 1589 में बारह बच्चों पर किया ।सन् 1567 में नगर कोट को जीत कर कांगड़ा देवी मंदिर की मूर्ति को खण्डित की और लूट लिया फिर गायों की हत्या कर के गौ रक्त को जूतों में भरकर मंदिर की प्राचीरों पर छाप लगाई ।जैन संत हरिविजय के समय सन् 1583-85 को जजिया कर और गौ हत्या पर पाबंदी लगाने की झूठी घोषणा की जिस पर कभी अमल नहीं हुआ।एक अंग्रेज रूडोल्फ ने अकबर की घोर निंदा की।कर्नल टोड लिखते हैं कि अकबर ने एकलिंग की मूर्ति तोड़ डाली और उस स्थान पर नमाज पढ़ी।1587 में जनता का धन लूटने और अपने खिलाफ हो रहे विरोधों को ख़त्म करने के लिए अकबर ने एक आदेश पारित किया कि जो भी उससे मिलना चाहेगा उसको अपनी उम्र के बराबर मुद्राएँ उसको भेंट में देनी पड़ेगी।जीवन भर इससे युद्ध करने वाले महान महाराणा प्रताप जी से अंत में इसने खुद ही हार मान ली थी यही कारण है कि अकबर के बार बार निवेदन करने पर भी जीवन भर जहाँगीर केवल ये बहाना करके महाराणा प्रताप के पुत्र अमर सिंह से युद्ध करने नहीं गया की उसके पास हथियारों और सैनिकोंकी कमी है..जबकि असलियत ये थी की उसको अपने बाप का बुरा हश्र याद था।विन्सेंट स्मिथ के अनुसार अकबर ने मुजफ्फर शाह को हाथी से कुचलवाया। हमजबान की जबान ही कटवा डाली। मसूद हुसैन मिर्ज़ा की आँखें सीकर बंद कर दी गयीं। उसके 300 साथी उसके सामने लाये गए और उनके चेहरों पर अजीबोगरीब तरीकों से गधों, भेड़ों और कुत्तों की खालें डाल कर काट डाला गया।मुग़ल आक्रमणकारी थे यह सिद्ध हो चुका है। मुगल दरबार तुर्क एवं ईरानी शक्ल ले चुका था। कभी भारतीय न बन सका। भारतीय राजाओं ने लगातार संघर्ष कर मुगल साम्राज्य को कभी स्थिर नहींहोने दिया। राजपूताना ने मुगलों को कभी स्वीकार नहीं किया।गुजरात, मालवा, मराठा, बिहार, बंगाल, असम तथा दक्षिण का कोई प्रदेश कभी भी

Wednesday, 13 May 2015

🌷अगर आप दूसरों पर.. 🌷अच्छाई करोगे तो.. 🌷आपके साथ भी.. अच्छा ही होगा ..!!

💝एक बार एक लड़का
💝अपने स्कूल की फीस भरने के लिए
💝एक दरवाजे से
💝दूसरे दरवाजे तक
💝कुछ सामान बेचा करता था,

💛एक दिन उसका
💛कोई सामान नहीं बिका
💛और उसे बड़े जोर से
💛भूख भी लग रही थी.
💛उसने तय किया कि
💛अब वह जिस भी दरवाजे पर जायेगा,
💛उससे खाना मांग लेगा...

❤पहला दरवाजा खटखटाते ही
❤एक लड़की ने दरवाजा खोला,
❤जिसे देखकर वह घबरा गया
❤और बजाय खाने के उसने
❤पानी का एक गिलास माँगा....

💙लड़की ने भांप लिया था कि
💙वह भूखा है, इसलिए वह
💙एक.. बड़ा गिलास दूध का ले आई.
💙लड़के ने धीरे-धीरे दूध पी लिया...

💚" कितने पैसे दूं ?"
💚लड़के ने पूछा.
💚" पैसे किस बात के ?"
💚लड़की ने जवाव में कहा.
💚"माँ ने मुझे सिखाया है कि
💚जब भी किसी पर दया करो तो
💚उसके पैसे नहीं लेने चाहिए."

💘"तो फिर मैं आपको
💘दिल से धन्यवाद देता हूँ."
💘जैसे ही उस लड़के ने वह घर छोड़ा,
💘उसे न केवल शारीरिक तौर पर
💘शक्ति भी मिल चुकी थी ,
💘बल्कि उसका भगवान् और
💘आदमी पर भरोसा और भी बढ़ गया था

💔सालों बाद वह लड़की
💔गंभीर रूप से बीमार पड़ गयी.
💔लोकल डॉक्टर ने उसे
💔शहर के बड़े अस्पताल में
💔इलाज के लिए भेज दिया...

💜विशेषज्ञ डॉक्टर होवार्ड  केल्ली को 💜मरीज देखने के लिए बुलाया गया.
💜जैसे ही उसने लड़की के
💜कस्बे का नाम सुना,
💜उसकी आँखों में चमक आ गयी...

💖वह एकदम सीट से उठा
💖और उस लड़की के कमरे में गया.
💖उसने उस लड़की को देखा,
💖एकदम पहचान लिया और
💖तय कर लिया कि वह
💖उसकी जान बचाने के लिए
💖जमीन-आसमान एक कर देगा....

🌹उसकी मेहनत और लग्न रंग लायी
🌹और उस लड़की कि जान बच गयी.
🌹डॉक्टर ने अस्पताल के
🌹ऑफिस में जा कर उस
🌹लड़की के इलाज का बिल लिया....

🌻उस बिल के कौने में
🌻एक नोट लिखा और
🌻उसे उस लड़की के पास
🌻भिजवा दिया.
🌻लड़की बिल का
🌻लिफाफा देखकर घबरागयी...

💐उसे मालूम था कि
💐वह बीमारी से तो वह बच गयी है
💐लेकिन बिल कि रकम
💐जरूर उसकी जान ले लेगी...

🍀फिर भी उसने धीरे से बिल खोला,
🍀रकम को देखा और फिर
🍀अचानक उसकी नज़र बिल के
🍀कौने में पैन से लिखे नोट पर गयी...

🌸जहाँ लिखा था,
🌸"एक गिलास दूध द्वारा इस बिल का 🌸भुगतान किया जा चुका है.
🌸" नीचे  उस नेक डॉक्टर
🌸होवार्ड केल्ली के हस्ताक्षर थे.

🌺ख़ुशी और अचम्भे से
🌺उस लड़की के गालों पर आंसू टपक पड़े
🌺उसने ऊपर कि और दोनों हाथ उठा कर
🌺कहा, " हे भगवान..!
🌺आपका बहुत-बहुत धन्यवाद..
🌺आपका प्यार इंसानों के
🌺दिलों और हाथों के द्वारा
🌺न जाने कहाँ- कहाँ फैल चुका है."

🌷अगर आप दूसरों पर..
🌷अच्छाई करोगे तो..
🌷आपके साथ भी.. अच्छा ही होगा ..!!


✊इस सन्देश को हर जगह पहुंचाएँ..!

Monday, 11 May 2015

भगवान शिव से जुड़ी 12 गुप्त बातें, जानिए शिव का द्रोही मुझे स्वप्न में भी पसंद नहीं। भगवान राम

।। आज की बात ।।

भगवान शिव से जुड़ी 12 गुप्त बातें, जानिए…

‘शिव का द्रोही मुझे स्वप्न में भी पसंद नहीं।’- भगवान राम

आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि ‘कल्पना’ ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है। हम जैसी कल्पना और विचार करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं। शिव ने इस आधार पर ध्यान की कई विधियों का विकास किया। भगवान शिव दुनिया के सभी धर्मों का मूल हैं। शिव के दर्शन और जीवन की कहानी दुनिया के हर धर्म और उनके ग्रंथों में अलग-अलग रूपों में विद्यमान है।

आज से 15 से 20 हजार वर्ष पूर्व वराह काल की शुरुआत में जब देवी-देवताओं ने धरती पर कदम रखे थे, तब उस काल में धरती हिमयुग की चपेट में थी। इस दौरान भगवान शंकर ने धरती के केंद्र कैलाश को अपना निवास स्थान बनाया।

भगवान विष्णु ने समुद्र को और ब्रह्मा ने नदी के किनारे को अपना स्थान बनाया था। पुराण कहते हैं कि जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है, जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है, जबकि धरती पर कुछ भी नहीं था। इन तीनों से सब कुछ हो गया।

वैज्ञानिकों के अनुसार तिब्बत धरती की सबसे प्राचीन भूमि है और पुरातनकाल में इसके चारों ओर समुद्र हुआ करता था। फिर जब समुद्र हटा तो अन्य धरती का प्रकटन हुआ और इस तरह धीरे-धीरे जीवन भी फैलता गया।

सर्वप्रथम भगवान शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें आदि देव भी कहा जाता है। आदि का अर्थ प्रारंभ। शिव को ‘आदिनाथ’ भी कहा जाता है। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम आदिश भी है। इस ‘आदिश’ शब्द से ही ‘आदेश’ शब्द बना है। नाथ साधु जब एक–दूसरे से मिलते हैं तो कहते हैं- आदेश।

भगवान शिव के अलावा ब्रह्मा और विष्णु ने संपूर्ण धरती पर जीवन की उत्पत्ति और पालन का कार्य किया। सभी ने मिलकर धरती को रहने लायक बनाया और यहां देवता, दैत्य, दानव, गंधर्व, यक्ष और मनुष्य की आबादी को बढ़ाया।

महाभारत काल : ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल तक देवता धरती पर रहते थे। महाभारत के बाद सभी अपने-अपने धाम चले गए। कलयुग के प्रारंभ होने के बाद देवता बस विग्रह रूप में ही रह गए अत: उनके विग्रहों की पूजा की जाती है।

पहले भगवान शिव थे रुद्र : वैदिक काल के रुद्र और उनके अन्य स्वरूप तथा जीवन दर्शन को पुराणों में विस्तार मिला। वेद जिन्हें रुद्र कहते हैं, पुराण उन्हें शंकर और महेश कहते हैं। वराह काल के पूर्व के कालों में भी शिव थे। उन कालों की शिव की गाथा अलग है।

देवों के देव महादेव : देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं।

भगवान शिव ने क्यों मार दिए थे विशालकाय मानव…

ब्रह्मा ने बनाए विशालकाय मानव : सन् 2007 में नेशनल जिओग्राफी की टीम ने भारत और अन्य जगह पर 20 से 22 फिट मानव के कंकाल ढूंढ निकाले हैं। भारत में मिले कंकाल को कुछ लोग भीम पुत्र घटोत्कच और कुछ लोग बकासुर का कंकाल मानते हैं।

हिन्दू धर्म के अनुसार सतयुग में इस तरह के विशालकाय मानव हुआ करते थे। बाद में त्रेतायुग में इनकी प्रजाति नष्ट हो गई। पुराणों के अनुसार भारत में दैत्य, दानव, राक्षस और असुरों की जाति का अस्तित्व था, जो इतनी ही विशालकाय हुआ करती थी।

भारत में मिले इस कंकाल के साथ एक शिलालेख भी मिला है। यह उस काल की ब्राह्मी लिपि का शिलालेख है। इसमें लिखा है कि ब्रह्मा ने मनुष्यों में शांति स्थापित करने के लिए विशेष आकार के मनुष्यों की रचना की थी। विशेष आकार के मनुष्यों की रचना एक ही बार हुई थी। ये लोग काफी शक्तिशाली होते थे और पेड़ तक को अपनी भुजाओं से उखाड़ सकते थे। लेकिन इन लोगों ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया और आपस में लड़ने के बाद देवताओं को ही चुनौती देने लगे। अंत में भगवान शंकर ने सभी को मार डाला और उसके बाद ऐसे लोगों की रचना फिर नहीं की गई।

भगवान शिव का धनुष पिनाक : शिव ने जिस धनुष को बनाया था उसकी टंकार से ही बादल फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे। ऐसा लगता था मानो भूकंप आ गया हो। यह धनुष बहुत ही शक्तिशाली था। इसी के एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया गया था। इस धनुष का नाम पिनाक था। देवी और देवताओं के काल की समाप्ति के बाद इस धनुष को देवरात को सौंप दिया गया था।

उल्लेखनीय है कि राजा दक्ष के यज्ञ में यज्ञ का भाग शिव को नहीं देने के कारण भगवान शंकर बहुत क्रोधित हो गए थे और उन्होंने सभी देवताओं को अपने पिनाक धनुष से नष्ट करने की ठानी। एक टंकार से धरती का वातावरण भयानक हो गया। बड़ी मुश्किल से उनका क्रोध शांत किया गया, तब उन्होंने यह धनुष देवताओं को दे दिया।

देवताओं ने राजा जनक के पूर्वज देवरात को दे दिया। राजा जनक के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवरात थे। शिव-धनुष उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था। इस धनुष को भगवान शंकर ने स्वयं अपने हाथों से बनाया था। उनके इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था। लेकिन भगवान राम ने इसे उठाकर इसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और इसे एक झटके में तोड़ दिया।

भगवान शिव का चक्र : चक्र को छोटा, लेकिन सबसे अचूक अस्त्र माना जाता था। सभी देवी-देवताओं के पास अपने-अपने अलग-अलग चक्र होते थे। उन सभी के अलग-अलग नाम थे। शंकरजी के चक्र का नाम भवरेंदु, विष्णुजी के चक्र का नाम कांता चक्र और देवी का चक्र मृत्यु मंजरी के नाम से जाना जाता था। सुदर्शन चक्र का नाम भगवान कृष्ण के नाम के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।

यह बहुत कम ही लोग जानते हैं कि सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान शंकर ने किया था। प्राचीन और प्रामाणिक शास्त्रों के अनुसार इसका निर्माण भगवान शंकर ने किया था। निर्माण के बाद भगवान शिव ने इसे श्रीविष्णु को सौंप दिया था। जरूरत पड़ने पर श्रीविष्णु ने इसे देवी पार्वती को प्रदान कर दिया। पार्वती ने इसे परशुराम को दे दिया और भगवान कृष्ण को यह सुदर्शन चक्र परशुराम से मिला।

त्रिशूल : इस तरह भगवान शिव के पास कई अस्त्र-शस्त्र थे लेकिन उन्होंने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र देवताओं को सौंप दिए। उनके पास सिर्फ एक त्रिशूल ही होता था। यह बहुत ही अचूक और घातक अस्त्र था। त्रिशूल 3 प्रकार के कष्टों दैनिक, दैविक, भौतिक के विनाश का सूचक है। इसमें 3 तरह की शक्तियां हैं- सत, रज और तम। प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन। इसके अलावा पाशुपतास्त्र भी शिव का अस्त्र है।

भगवान शिव के गले में जो सांप है उसका नाम जानिए.

भगवान शिव का सेवक वासुकी : शिव को नागवंशियों से घनिष्ठ लगाव था। नाग कुल के सभी लोग शिव के क्षेत्र हिमालय में ही रहते थे। कश्मीर का अनंतनाग इन नागवंशियों का गढ़ था। नागकुल के सभी लोग शैव धर्म का पालन करते थे। नागों के प्रारंभ में 5 कुल थे। उनके नाम इस प्रकार हैं- शेषनाग (अनंत), वासुकी, तक्षक, पिंगला और कर्कोटक। ये शोध के विषय हैं कि ये लोग सर्प थे या मानव या आधे सर्प और आधे मानव? हालांकि इन सभी को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है तो निश्‍चित ही ये मनुष्य नहीं होंगे।

नाग वंशावलियों में ‘शेषनाग’ को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। शेषनाग को ही ‘अनंत’ नाम से भी जाना जाता है। ये भगवान विष्णु के सेवक थे। इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए, जो शिव के सेवक बने। फिर तक्षक और पिंगला ने राज्य संभाला। वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था और मान्यता है कि तक्षक ने ही तक्षकशिला (तक्षशिला) बसाकर अपने नाम से ‘तक्षक’ कुल चलाया था। उक्त पांचों की गाथाएं पुराणों में पाई जाती हैं।

उनके बाद ही कर्कोटक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अनत, अहि, मनिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना इत्यादि नाम से नागों के वंश हुए जिनके भारत के भिन्न-भिन्न इलाकों में इनका राज्य था।

जानिए अमरनाथ के अमृत वचन किस नाम से सुरक्षित…

अमरनाथ के अमृत वचन : शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया, उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

अमरनाथ के अमृत वचन : शिव द्वारा मां पार्वती को जो ज्ञान दिया गया, वह बहुत ही गूढ़-गंभीर तथा रहस्य से भरा ज्ञान था। उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

योगशास्त्र के प्रवर्तक भगवान शिव के ‘‍विज्ञान भैरव तंत्र’ और ‘शिव संहिता’ में उनकी संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है। भगवान शिव के योग को तंत्र या वामयोग कहते हैं। इसी की एक शाखा हठयोग की है। भगवान शिव कहते हैं- ‘वामो मार्ग: परमगहनो योगितामप्यगम्य:’ अर्थात वाम मार्ग अत्यंत गहन है और योगियों के लिए भी अगम्य है। -मेरुतंत्र

भगवान शिव ने अपना ज्ञान सबसे पहले किसे दिया…

भगवान शिव के शिष्य : शिव तो जगत के गुरु हैं। मान्यता अनुसार सबसे पहले उन्होंने अपना ज्ञान सप्त ऋषियों को दिया था। सप्त ऋषियों ने शिव से ज्ञान लेकर अलग-अलग दिशाओं में फैलाया और दुनिया के कोने-कोने में शैव धर्म, योग और ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया। इन सातों ऋषियों ने ऐसा कोई व्यक्ति नहीं छोड़ा जिसको शिव कर्म, परंपरा आदि का ज्ञान नहीं सिखाया गया हो। आज सभी धर्मों में इसकी झलक देखने को मिल जाएगी। परशुराम और रावण भी शिव के शिष्य थे।

शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत ‍की थी जिसके चलते आज भी नाथ, शैव, शाक्त आदि सभी संतों में उसी परंपरा का निर्वाह होता आ रहा है। आदि गुरु शंकराचार्य और गुरु गोरखनाथ ने इसी परंपरा और आगे बढ़ाया।

सप्त ऋषि ही शिव के मूल शिष्य : भगवान शिव ही पहले योगी हैं और मानव स्वभाव की सबसे गहरी समझ उन्हीं को है। उन्होंने अपने ज्ञान के विस्तार के लिए 7 ऋषियों को चुना और उनको योग के अलग-अलग पहलुओं का ज्ञान दिया, जो योग के 7 बुनियादी पहलू बन गए। वक्त के साथ इन 7 रूपों से सैकड़ों शाखाएं निकल आईं। बाद में योग में आई जटिलता को देखकर पतंजलि ने 300 ईसा पूर्व मात्र 200 सूत्रों में पूरे योग शास्त्र को समेट दिया। योग का 8वां अंग मोक्ष है। 7 अंग तो उस मोक्ष तक पहुंचने के लिए है।

भगवान शिव के गणों के नाम…

भगवान शिव गण : भगवान शिव की सुरक्षा और उनके आदेश को मानने के लिए उनके गण सदैव तत्पर रहते हैं। उनके गणों में भैरव को सबसे प्रमुख माना जाता है। उसके बाद नंदी का नंबर आता और फिर वीरभ्रद्र। जहां भी शिव मंदिर स्थापित होता है, वहां रक्षक (कोतवाल) के रूप में भैरवजी की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है। भैरव दो हैं- काल भैरव और बटुक भैरव। दूसरी ओर वीरभद्र शिव का एक बहादुर गण था जिसने शिव के आदेश पर दक्ष प्रजापति का सर धड़ से अलग कर दिया। देव संहिता और स्कंद पुराण के अनुसार शिव ने अपनी जटा से ‘वीरभद्र’ नामक गण उत्पन्न किया।

इस तरह उनके ये प्रमुख गण थे- भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। ये सभी गण धरती और ब्रह्मांड में विचरण करते रहते हैं और प्रत्येक मनुष्य, आत्मा आदि की खैर-खबर रखते हैं।

भगवान शिव के द्वारपाल…

भगवान शिव के द्वारपाल : कैलाश पर्वत के क्षेत्र में उस काल में कोई भी देवी या देवता, दैत्य या दानव शिव के द्वारपाल की आज्ञा के बगैर अंदर नहीं जा सकता था। ये द्वारपाल संपूर्ण दिशाओं में तैनात थे।

इन द्वारपालों के नाम हैं- नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल। उल्लेखनीय है कि शिव के गण और द्वारपाल नंदी ने ही कामशास्त्र की रचना की थी। कामशास्त्र के आधार पर ही कामसूत्र लिखा गया था।

भगवान शिव पंचायत को जानिए…

भगवान शिव पंचायत : पंचायत का फैसला अंतिम माना जाता है। देवताओं और दैत्यों के झगड़े आदि के बीच जब कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेना होता था तो शिव की पंचायत का फैसला अंतिम होता था। शिव की पंचायत में 5 देवता शामिल थे।

ये 5 देवता थे:- 1. सूर्य, 2. गणपति, 3. देवी, 4. रुद्र और 5. विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।

भगवान शिव के पार्षद…

भगवान शिव पार्षद : जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं ‍उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि ‍शिव के पार्षद हैं। यहां देखा गया है कि नंदी और भृंगी गण भी है, द्वारपाल भी है और पार्षद भी।

भगवान शिव के प्रतीक चिह्न

भगवान शिव चिह्न : वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्ध चंद्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं। हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।

भगवान शिव की जटाएं हैं। उन जटाओं में एक चंद्र चिह्न होता है। उनके मस्तष्क पर तीसरी आंख है। वे गले में सर्प और रुद्राक्ष की माला लपेटे रहते हैं। उनके एक हाथ में डमरू तो दूसरे में त्रिशूल है। वे संपूर्ण देह पर भस्म लगाए रहते हैं। उनके शरीर के निचले हिस्से को वे व्याघ्र चर्म से लपेटे रहते हैं। वे वृषभ की सवारी करते हैं और कैलाश पर्वत पर ध्यान लगाए बैठे रहते हैं। माना जाता है कि केदारनाथ और अमरनाथ में वे विश्राम करते हैं।

भस्मासुर से बचकर यहां छिप गए थे शिव…

भगवान शिव की गुफा : शिव ने एक असुर को वरदान दिया था कि तू जिसके भी सिर पर हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा। इस वरदान के कारण ही उस असुर का नाम भस्मासुर हो गया। उसने सबसे पहले शिव को ही भस्म करने की सोची।

भस्मासुर से बचने के लिए भगवान शंकर वहां से भाग गए। उनके पीछे भस्मासुर भी भागने लगा। भागते-भागते शिवजी एक पहाड़ी के पास रुके और फिर उन्होंने इस पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। बाद में विष्णुजी ने आकर उनकी जान बचाई।

माना जाता है कि वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। इन खूबसूरत पहाड़ियों को देखने से ही मन शांत हो जाता है। इस गुफा में हर दिन सैकड़ों की तादाद में शिवभक्त शिव की अराधना करते हैं।

भगवान राम ने किया था भगवान शिव से युद्ध : सभी जानते हैं कि राम के आराध्यदेव शिव हैं, तब फिर राम कैसे शिव से युद्ध कर सकते हैं? पुराणों में विदित दृष्टांत के अनुसार यह युद्ध श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के दौरान लड़ा गया।

यज्ञ का अश्व कई राज्यों को श्रीराम की सत्ता के अधीन किए जा रहा था। इसी बीच यज्ञ का अश्व देवपुर पहुंचा, जहां राजा वीरमणि का राज्य था। वीरमणि ने भगवान शंकर की तपस्या कर उनसे उनकी और उनके पूरे राज्य की रक्षा का वरदान मांगा था। महादेव के द्वारा रक्षित होने के कारण कोई भी उनके राज्य पर आक्रमण करने का साहस नहीं करता था। जब यज्ञ का घोड़ा उनके राज्य में पहुंचा तो राजा वीरमणि के पुत्र रुक्मांगद ने उसे बंदी बना लिया। ऐसे में अयोध्या और देवपुर में युद्ध होना तय था।

महादेव ने अपने भक्त को मुसीबत में जानकर वीरभद्र के नेतृत्व में नंदी, भृंगी सहित अपने सारे गणों को भेज दिया। एक और राम की सेना तो दूसरी ओर शिव की सेना थी। वीरभद्र ने एक त्रिशूल से राम की सेना के पुष्कल का मस्तक काट दिया। उधर भृंगी आदि गणों ने भी राम के भाई शत्रुघ्न को बंदी बना लिया। बाद में हनुमान भी जब नंदी के शिवास्त्र से पराभूत होने लगे तब सभी ने राम को याद किया। अपने भक्तों की पुकार सुनकर श्रीराम तत्काल ही लक्ष्मण और भरत के साथ वहां आ गए। श्रीराम ने सबसे पहले शत्रुघ्न को मुक्त कराया और उधर लक्ष्मण ने हनुमान को मुक्त करा दिया। फिर श्रीराम ने सारी सेना के साथ शिव गणों पर धावा बोल दिया। जब नंदी और अन्य शिव के गण परास्त होने लगे तब महादेव ने देखा कि उनकी सेना बड़े कष्ट में है तो वे स्वयं युद्ध क्षेत्र में प्रकट हुए, तब श्रीराम और शिव में युद्ध छिड़ गया।

भयंकर युद्ध के बाद अंत में श्रीराम ने पाशुपतास्त्र निकालकर कर शिव से कहा, ‘हे प्रभु, आपने ही मुझे ये वरदान दिया है कि आपके द्वारा प्रदत्त इस अस्त्र से त्रिलोक में कोई पराजित हुए बिना नहीं रह सकता इसलिए हे महादेव, आपकी ही आज्ञा और इच्छा से मैं इसका प्रयोग आप पर ही करता हूं’, ये कहते हुए श्रीराम ने वो महान दिव्यास्त्र भगवान शिव पर चला दिया।

वो अस्त्र सीधा महादेव के ह्वदयस्थल में समा गया और भगवान रुद्र इससे संतुष्ट हो गए। उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक श्रीराम से कहा कि आपने युद्ध में मुझे संतुष्ट किया है इसलिए जो इच्छा हो वर मांग लें। इस पर श्रीराम ने कहा कि ‘हे भगवन्, यहां मेरे भाई भरत के पुत्र पुष्कल सहित असंख्य योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गए है, कृपया कर उन्हें जीवनदान दीजिए।’ महादेव ने कहा कि ‘तथास्तु।’ इसके बाद शिव की आज्ञा से राजा वीरमणि ने यज्ञ का अश्व श्रीराम को लौटा दिया और श्रीराम भी वीरमणि को उनका राज्य सौंपकर शत्रुघ्न के साथ अयोध्या की ओर चल दिए।

ब्रह्मा, विष्णु और शिव का जन्म एक रहस्य है। तीनों के जन्म की कथाएं वेद और पुराणों में अलग-अलग हैं, लेकिन उनके जन्म की पुराण कथाओं में कितनी सच्चाई है और उनके जन्म की वेदों में लिखी कथाएं कितनी सच हैं, इस पर शोधपूर्ण दृष्टि की जरूरत है।

यहां यह बात ध्यान रखने की है कि ईश्वर अजन्मा है।

अलग-अलग पुराणों में भगवान शिव और विष्णु के जन्म के विषय में कई कथाएं प्रचलित हैं। शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव को स्वयंभू माना गया है जबकि विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु स्वयंभू हैं।

शिव पुराण के अनुसार एक बार जब भगवान शिव अपने टखने पर अमृत मल रहे थे तब उससे भगवान विष्णु पैदा हुए जबकि विष्णु पुराण के अनुसार ब्रह्मा भगवान विष्णु की नाभि कमल से पैदा हुए जबकि शिव भगवान विष्णु के माथे के तेज से उत्पन्न हुए बताए गए हैं। विष्णु पुराण के अनुसार माथे के तेज से उत्पन्न होने के कारण ही शिव हमेशा योगमुद्रा में रहते हैं।

भगवान शिव के जन्म की कहानी हर कोई जानना चाहता है। श्रीमद् भागवत के अनुसार एक बार जब भगवान विष्णु और ब्रह्मा अहंकार से अभिभूत हो स्वयं को श्रेष्ठ बताते हुए लड़ रहे थे, तब एक जलते हुए खंभे से जिसका कोई भी ओर-छोर ब्रह्मा या विष्णु नहीं समझ पाए, भगवान शिव प्रकट हुए।

यदि किसी का बचपन है तो निश्चत ही जन्म भी होगा और अंत भी। विष्णु पुराण में शिव के बाल रूप का वर्णन मिलता है। इसके अनुसार ब्रह्मा को एक बच्चे की जरूरत थी। उन्होंने इसके लिए तपस्या की। तब अचानक उनकी गोद में रोते हुए बालक शिव प्रकट हुए। ब्रह्मा ने बच्चे से रोने का कारण पूछा तो उसने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि उसका नाम ‘ब्रह्मा’ नहीं है इसलिए वह रो रहा है।

तब ब्रह्मा ने शिव का नाम ‘रुद्र’ रखा जिसका अर्थ होता है ‘रोने वाला’। शिव तब भी चुप नहीं हुए इसलिए ब्रह्मा ने उन्हें दूसरा नाम दिया, पर शिव को नाम पसंद नहीं आया और वे फिर भी चुप नहीं हुए। इस तरह शिव को चुप कराने के लिए ब्रह्मा ने 8 नाम दिए और शिव 8 नामों (रुद्र, शर्व, भाव, उग्र, भ
शिव को इसलिए कहते हैं महाकाल -
आज जहां महाकाल मंदिर है वहां प्राचीन समय में वन
हुआ
करता था, जिसके अधिपति महाकाल थे। इसलिए इसे
महाकाल
वन भी कहा जाता था। स्कंदपुराण के अवंती खंड, शिव
महापुराण, मत्स्य पुराण आदि में महाकाल वन का
वर्णन
मिलता है। शिव महापुराण की उत्तराद्र्ध के 22वे
अध्याय के
अनुसार दूषण नामक एक दैत्य से भक्तों की रक्षा करने के
लिए
भगवान शिव ज्योति के रूप में यहां प्रकट हुए थे। दूषण
संसार
का काल थे और शिव ने उसे नष्ट किया अत: वे
महाकाल के नाम
से पूज्य हुए। तत्कालीन राजा राजा चंद्रसेन के युग में
यहां एक
मंदिर भी बनाया गया, जो महाकाल का पहला
मंदिर था।
महाकाल का वास होने से पुरातन साहित्य में उज्जैन
को महाकालपुरम भी कहा गया है।
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अकाल मृत्यु वो मरे, जो काम करे चण्डाल का।
काल उसका क्या करे, जो भक्त हो महाकाल का॥
-------------------------------------------------
12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर कई कारणों से
अलग हैं।
महाकाल के दर्शन से कई परेशानियों से मुक्ति मिलती
है।
खासतौर पर महाकाल के दर्शन के बाद मृत्यु का भय दूर
हो जाता है क्योंकि महाकाल को काल
का अधिपति माना गया है।
सभी देवताओं में भगवान शिव ही एकमात्र ऐसे देवता हैं
जिनका पूजन लिंग रूप में भी किया जाता है। भारत में
विभिन्न
स्थानों पर भगवान शिव के प्रमुख 12 शिवलिंग
स्थापित हैं।
इनकी महिमा का वर्णन अनेक धर्म ग्रंथों में लिखा है।
इनकी महिमा को देखते हुए ही इन्हें ज्योतिर्लिंग
भी कहा जाता है। यूं तो इन
सभी ज्योतिर्लिंगों का अपना अलग महत्व है लेकिन
इन सभी में
उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का विशेष
स्थान है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार-
आकाशे तारकेलिंगम्, पाताले हाटकेश्वरम्
मृत्युलोके च महाकालम्, त्रयलिंगम् नमोस्तुते।।
यानी आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर
लिंग और
पृथ्वी पर महाकालेश्वर से बढ़कर अन्य कोई
ज्योतिर्लिंग नहीं है।
इसलिए महाकालेश्वर
को पृथ्वी का अधिपति भी माना जाता है अर्थात
वे
ही संपूर्ण पृथ्वी के एकमात्र राजा हैं।
एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग
-------------------------------
महाकालेश्वर की एक और खास बात यह भी है कि
सभी प्रमुख
12 ज्योतिर्लिंगों में एकमात्र महाकालेश्वर ही
दक्षिणमुखी हैं
अर्थात इनकी मुख दक्षिण की ओर है। धर्म शास्त्रों के
अनुसार
दक्षिण दिशा के स्वामी स्वयं भगवान यमराज हैं।
इसलिए यह
भी मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से भगवान
महाकालेश्वर के
दर्शन व पूजन करता है उसे मृत्यु उपरांत यमराज द्वारा
दी जाने
वाली यातनाओं से मुक्ति मिल जाती है।
संपूर्ण विश्व में महाकालेश्वर ही एकमात्र ऐसा
ज्योतिर्लिंग है
जहां भगवान शिव की भस्मारती की जाती है।
भस्मारती को देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते
हैं।
मान्यता है कि प्राचीन काल में मुर्दे की भस्म से
भगवान
महाकालेश्वर की भस्मारती की जाती थी लेकिन
कालांतर में
यह प्रथा समाप्त हो गई और वर्तमान में गाय के गोबर
से बने
उपलों(कंडों) की भस्म से महाकाल
की भस्मारती की जाती है। यह आरती सूर्योदय से
पूर्व सुबह 4
बजे की जाती है। जिसमें भगवान को स्नान के बाद भस्म चढ़ाई जाती है।
🙏🙏जय श्री महाकाल🙏🙏
गोरख को हटाना...अथाँत शिव को हटाना...
आदैश शिवगोरख

प्रचंड भूकंप के बाद भी पशुपतिनाथ मंदिर सुरक्षित कैसे ? विज्ञान या शिवज्ञान

प्रचंड भूकंप के बाद भी पशुपतिनाथ मंदिर सुरक्षित
कैसे ?
विज्ञान या शिवज्ञान
यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल में
सूचीबद्ध नेपाल
की राजधानी काठमांडू मे बागमती नदी के तट पर
स्थित
पशुपतिनाथ मंदिर सनातनधर्म के आठ सर्वाधिक
पवित्र स्थलों
में से एक है । पौराणिक काल मे काठमांडू का नाम
कांतिपुर था
। मान्यतानुसार मंदिर का ढांचा प्रकृतिक आपदाओं
से कई बार
नष्ट हुआ है । परंतु इसका गर्भगृह पौराणिक काल
से अबतक
संपूर्ण रूप से सुरक्षित है । लोग इसे पहली शताब्दी
का मानते
हैं तो इतिहास इसे तीसरी शताब्दी का मानता हैं ।
शनिवार दिनांक 25.04.15 को सुबह 11 बजकर 41
मिनट पर
आए 7.9 तीव्रता के भीषण भूकंप से पूरे नेपाल मे
तबाही मच
गई है । जहां एक ओर हजारों की तादात मे लोगों की
मृत्यु हुई है
वहीं दूसरी ओर विज्ञानिक तकनीक से बनी असंख्य
इमारतें भी
धराशाई हुई । परंतु पशुपतिनाथ मंदिर का गर्भग्रह
कल भी
विधमान था व आज भी विधमान है । आइए जानते हैं
इसके पीछे
विज्ञान है या शिवज्ञान।हिमवतखंड किंवदंती
अनुसार एक
समय मे भगवान शंकर चिंकारे का रूप धारण कर
काशी त्यागकर
बागमती नदी के किनारे मृगस्थली वन चले गए थे ।
देवताओं ने उन्हें खोजकर पुनः काशी लाने का प्रयास
किया
परंतु शिव द्वारा नदी के दूसरे छोर पर छलांग लगाने
के कारण
उनका सींग चार टुकडों में टूट गया जिससे भगवान
पशुपति
चतुर्मुख लिंग के रूप में प्रकट हुए । ज्योतिर्लिंग
केदारनाथ की
किंवदंती अनुसार पाण्डवों के स्वर्गप्रयाण के दौरान
भगवान
शंकर ने पांडवों को भैंसे का रूपधर दर्शन दिए थे जो
बाद में
धरती में समा गए परंतु भीम ने उनकी पूंछ पकड़ ली
थी । जिस
स्थान पर धरती के बाहर उनकी पूंछ रह गई वह
स्थान
ज्योतिर्लिंग केदारनाथ कहलाया, और जहां धरती के
बाहर
उनका मुख प्रकट हुआ वह स्थान पशुपतिनाथ
कहलाया । इस
कथा की पुष्टि स्कंदपुराण भी करता है ।
वास्तु विज्ञान अनुसार पशुपतिनाथ गर्भगृह में एक
मीटर ऊंचा
चारमुखी लिंग विग्रह स्थित है । प्रत्येक मुखाकृति
के दाएं हाथ
में रुद्राक्ष की माला व बाएं हाथ में कमंडल है ।
प्रत्येक मुख
अलग-अलग गुण प्रकट करता है। पहले दक्षिण
मुख को अघोर
कहते है । दूसरे पूर्व मुख को तत्पुरुष कहते हैं ।
तीसरे उत्तर
मुख को अर्धनारीश्वर या वामदेव कहते है । चौथे
पश्चिमी मुख
को साध्योजटा कहते है तथा ऊपरी भाग के निराकार
मुख को
ईशान कहते है ।
मान्यतानुसार पशुपतिनाथ चतुर्मुखी शिवलिंग चार
धामों और
चार वेदों का प्रतीक माना जाता है । मंदिर एक मीटर
ऊंचे
चबूतरे पर स्थापित है। पशुपतिनाथ शिवलिंग के
सामने चार
दरवाज़े हैं । जो चारों दिशाओं को संबोधित करते हैं ।
यहां महिष
रूपधारी भगवान शिव का शिरोभाग है, जिसका
पिछला हिस्सा
केदारनाथ में है । इस मंदिर का निर्माण वास्तु
आधारित ज्ञान
पर पगोडा़ शैली के अनुसार हुआ है । पगोडा़ शैली
मूलरूप से
उत्तरपूर्वी भारत के क्षेत्र से उदय हुई थी जिसे
चाईना व
पूर्वी विश्व ने आपनाया और नाम दिया फेंगशुई ।
24 जून 2013, उत्तर भारत में भारी बारिश के
कारण
उत्तराखण्ड में बाढ़ और भूस्खलन की स्थिति पैदा
हो गई तथा
इस भयानक आपदा में 5000 से ज्यादा लोग मारे गए
थे ।
सर्वाधिक तबाही रूद्रप्रयाग ज़िले में स्थित शिव
की नगरी
केदारनाथ में हुई थी । परंतु इतनी भारी प्रकृतिक
आपदा के बाद
भी केदारनाथ मंदिर सुरक्षित रहा था और आज भी
अटल है ।
शनिवार दिनांक 25.04.15 को सुबह 11 बजकर 41
मिनट पर
आए 7.9 तीव्रता के भीषण भूकंप के उपरांत भी
पशुपतिनाथ
गर्भग्रह पूरी तरह सुरक्षित है ।
स्कंदपुराण अनुसार यह दोनों मंदिर एकदूसरे से मुख
और पुच्छ
से जुड़े हुए हैं तथा इन दोनों मंदिरों मे परमेश्वर शिव
द्वारा
रचित वास्तु ज्ञान का उपयोग किया गया है । मूलतः
सभी
शिवालयों के निर्माण मे शिवलिंग जितना भूस्थल से
ऊपर होते हैं
उतना ही भूस्थल के नीचे समाहित होते हैं । यहां
विज्ञान का
एक सिद्धांत उपयोग मे लिया जाता है जिसे “सेंटर
ऑफ
ग्रेविटी” “गुरत्वाकर्षण केंद्र” कहते है ।
वैदिक पद्धति अनुसार शिवालयों का निर्माण सैदेव
वहीं किया
जाता हैं जहां पृथ्वी की चुम्बकीय तरंगे घनी होती हैं।
शिवालयों
में शिवलिंग ऐसी जगह पर स्थापित किया जाता है
जहां
चुम्बकीय तरंगों का नाभिकीय क्षेत्र विद्धमान हो।
तथा
स्थापना के समय गुंबद का केंद्र शिवलिंग के केंद्र
के सीधे
आनुपातिक तौर पर स्थापित किया जाता है। यह
शिव का ही
ज्ञान है जिसे कुछ लोग विज्ञान और भूतत्त्व
विज्ञान के नाम
से जानते है ।🙏🙏🚩🙏🙏

गुरु तेग बहादुर जी औरंगजेब’ के दरबार में चनौती दी कि यदि मुग़ल सैनिक उन्हें स्वयं इस्लाम कबूल करवाने में कामयाब रहे तो अन्य हिन्दू सहर्ष ही इस्लाम अपना लेंगे

सरदार के “बारह बज गए” मुहावरे के पीछे का सच।

एक सरदार पर जोक बनाना औए सुनाना कितना आसान होता है न । सर में पंगडी और बगल में कृपाण रखने वाले सरदार भी अक्सर आपके जोक्स और मजाक को भी नजरअंदाज करते हुए खुश रहते हैं.फिर भी आप उनसे बगैर पूँछे “सरदार जी के बारह बज गए” कहते हुए मजे लेते रहते हैं ।

ज्यादातर लोगों को लगता है की सरदार के चिल्ड नेचर और भाव-भंगिमाओं के कारण ही इस फ्रेज का लोग इस्तेमाल करते हैं ।

आज हम आपको बताते हैं की इस जुमले की पीछे की हकीकत क्या है,और निश्चित ही इसे पढ़कर इसका प्रयोग करने वालों को शर्मिंदगी जरूर महसूस होगी । आप ये समझ पायेंगे कि एक सरदार क्या होता है?

1) सत्रहवीं शताब्दी में जब देश में मुगलों का अत्याचार चरम पर था,बहुसंख्यक हिन्दुओं को धर्म-परिवर्तन के लिए अमानवीय यातनाएं दी जाती थीं,औरंगजेब के काल में ये स्थिति और बदतर हो गयी ।

2) मुग़ल सैनिक,धर्मान्तरण के लिए हिन्दू महिलाओं की आबरू को निशाना बनाते थे । अंततः दुर्दांत क़त्ल-ए-आम और बलात्कार से परेशान हो कश्मीरी पंडितों ने आनंदपुर में सिखों के नवमे गुरु तेग बहादुर से मदद की गुहार लगाई.

3) गुरु तेग बहादुर ने बादशाह ‘औरंगजेब’ के दरबार में अपने आपको प्रस्तुत किया और चुनौती दी कि यदि मुग़ल सैनिक उन्हें स्वयं इस्लाम कबूल करवाने में कामयाब रहे तो अन्य हिन्दू सहर्ष ही इस्लाम अपना लेंगे ।

4) औरंगजेब बेहद क्रूर था,परन्तु अपनी कौल का पक्का व्यक्ति था,गुरु जी उसके स्वभाव से परिचित थे । गुरूजी के प्रस्ताव पर उसने सहर्ष स्वीकृति दे दी । गुरु तेग बहादुर और उनके कई शिष्य मरते दम तक अत्याचार सहते हुए शहीद हो गए,पर इस्लाम स्वीकार नहीं किया । इस तरह अपने प्राणों की बलि देकर उन्होंने बांकी हिन्दुओं के हिंदुत्व को बचा लिया ।

5) इसी कारण उन्हें “हिन्द की चादर” से भी जाना जाता है,उनके देहावसान के बाद,उनके सुयोग्य बेटे गुरु गोविन्द सिंह जी ने हिंदुत्व की रक्षा के लिए आर्मी का निर्माण किया,जो कालांतर में ‘सिख’ के नाम से जाने गए ।

6) 1739 में जब इरानी आक्रांता नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला करते हुए,हिन्दुस्तान की बहुमूल्य संपदा को लूटना शुरू कर दिया । इन हवसी आक्रमणकारियों ने करीब 2200 भारतीय महिलाओं को बंधक बना लिया.

7) सरदार जस्सा सिंह जो की सिख आर्मी के कमांडर-इन-चीफ थे,ने इन लुटेरों पर हमला करने की योजना बनायी । परन्तु उनकी सेना दुश्मन की तुलना में बहुत छोटी थी इसलिए उन्होंने आधी रात को बारह बजे हमला करने का निर्णय लिया ।

8) महज कुछ सैकड़ों की संख्या में सरदारों ने,कई हजार लुटेरों के दांत खट्टे करते हुए महिलाओं को आजाद करा दिया । सरदारों के शौर्य और वीरता से लुटेरों की नींद और चैन हराम हो गया.

9) यह क्रम नादिर शाह के बाद उसके सेनापति अहमद शाह अब्दाली के काल में भी जारी रहा । अब्दालियों और ईरानियों ने अब्दाल मार्केट में,हिन्दू औरतों को बेंचना शुरू कर दिया.सिखों ने अपनी मिडनाईट(12 बजे) में ही हमला करने की स्ट्रैटिजी जारी रखी और एक बार फिर दुश्मनों की आँखों में धुल झोंकते हुए महिलाओं को बचा लिया ।

10) सफलता पूर्वक लड़कियों और औरतों के सम्मान की रक्षा करते हुए,सिखों ने दुश्मनों और लुटेरों से अपनी इज्जत की हिफाजत की । रात 12 बजे के समय में हमला करते समय लुटेरे कहते थे “सरदारों के बारह बज गए”सरदार और सिख राष्ट्र की अमूल्य धरोहर हैं। सरदार के केश और कृपाण उसे अतुलित धैर्य और साहस से परिपूरित करते हैं ।

सरदार और सिख राष्ट्र की अमूल्य धरोहर हैं, सरदार के केश और कृपाण उसे अतुलित धैर्य और साहस से परिपूरित करते हैं । सिख एक महान कौम है,जिसने मध्यकाल में गुलामी की काली रात में सनातन और हिन्दुस्तान को स्वयं के प्राणों की बलि देकर बचाए रखा । गुरु गोविन्द सिंह जी की प्रसिद्द उक्ति है

सवा लाख से एक लडाऊं,तब मै गुरु गोविंद सिंह कहलाऊं

ऐसी वीरता,साहस और ईमानदारी के पर्याय सरदारों को “12 बज गए” कह कर चिढाना/हँसना बेहद शर्मनाक है । उन विदेशी लुटेरों से रक्षित स्त्रियों के वंशजों द्वारा ‘लुटेरों की ही टिप्पणी’ को दोहराना अनजाने में ही सही पर,किसी देशद्रोह से कम नहीं है।

सरदारों के “12 बज गए” एक ऐसा मुहावरा है जो की उन लुटेरों के ‘गीदड़पाने’ और हमारी वीरता का पर्याय है,इसे लाफिंग मैटर के रूप में नहीं बल्कि गर्व के रूप में कहिये।